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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 133
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
मेखलाबन्धनम्।
१-५ अगस्त्यः। मेखला। १ भुरिक् २, ५ अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्, ४ जगती।
य इ॒मां दे॒वो मेख॑लामाब॒बन्ध॒ यः सं॑न॒नाह॒ य उ॑ नो यु॒योज॑ ।
यस्य॑ दे॒वस्य॑ प्र॒शिषा॒ चरा॑मः॒ स पा॒रमि॑च्छा॒त् स स उ॑ नो॒ वि मु॑ञ्चात्॥१॥
आहु॑तास्य॒भिहु॑त॒ ऋषी॑णाम॒स्यायु॑धम्।
पूर्वा॑ व्र॒तस्य॑ प्राश्न॒ती वी॑र॒घ्नी भ॑व मेखले ॥२॥
मृ॒त्योर॒हं ब्र॑ह्मचा॒री यदस्मि॑ नि॒र्याच॑न् भू॒तात् पुरु॑षं य॒माय॑ ।
तम॒हं ब्रह्म॑णा॒ तप॑सा॒ श्रमे॑णा॒नयै॑नं॒ मेख॑लया सिनामि ॥३॥
श्र॒द्धाया॑ दुहि॒ता तप॒सोऽधि॑ जा॒ता स्वस॒ ऋषी॑णां भूत॒कृतां॑ ब॒भूव॑ ।
सा नो॑ मेखले म॒तिमा धे॑हि मे॒धामथो॑ नो धेहि॒ तप॑ इन्द्रि॒यं च॑ ॥४॥
यां त्वा॒ पूर्वे॑ भूत॒कृत॒ ऋष॑यः परिबेधि॒रे।
सा त्वं परि॑ ष्वजस्व॒ मां दी॑र्घायु॒त्वाय॑ मेखले ॥५॥