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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 004
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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आत्मगोपनम्।
१-३ अथर्वा। १ त्वष्टा, पर्जन्यः, ब्रह्मणस्पतिः, अदितिः, २ अंशः, भगः, वरुणः, मित्रः, अर्यमा, अदितिः, मरुतः,३ अश्विनौ, द्यौष्पिता। पथ्याबृहती, २ संस्तारपङ्क्तिः, ३ त्रिपदा विराड्गायत्री।
त्वष्टा॑ मे॒ दैव्यं॒ वचः॑ प॒र्जन्यो॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑ ।
पु॒त्रैर्भ्रातृ॑भि॒रदि॑ति॒र्नु पा॑तु नो दु॒ष्टरं॒ त्राय॑माणं॒ सहः॑ ॥१॥
अंशो॒ भगो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मादि॑तिः॒ पान्तु॑ म॒रुतः॑ ।
अप॒ तस्य॒ द्वेषो॑ गमेदभि॒ह्रुतो॑ यावय॒च्छत्रु॒मन्ति॑तम्॥२॥
धि॒ये सम॑श्विना॒ प्राव॑तं न उरु॒ष्या ण॑ उरुज्म॒न्नप्र॑युछन्।
द्यौ॒३ष्पित॑र्या॒वय॑ दु॒च्छुना॒ या॥३॥