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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 112
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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पाशमोचनम्।
१-३ अथर्वा। अग्निः। त्रिष्टुप्।
मा ज्ये॒ष्ठं व॑धीद॒यम॑ग्न ए॒षां मू॑ल॒बर्ह॑णा॒त् परि॑ पाह्येनम्।
स ग्राह्याः॒ पाशा॒न् वि चृ॑त प्रजा॒नन् तुभ्यं॑ दे॒वा अनु॑ जानन्तु॒ विश्वे॑ ॥१॥
उन्मु॑ञ्च॒ पाशां॒स्त्वम॑ग्न ए॒षां त्रय॑स्त्रि॒भिरुत्सि॑ता॒ येभि॒रास॑न्।
स ग्राह्याः॒ पाशा॒न् वि चृ॑त प्रजा॒नन् पि॑तापु॒त्रौ मा॒तरं॑ मुञ्च॒ सर्वा॑न्॥२॥
येभिः॒ पाशैः॒ परि॑वित्तो॒ विब॒द्धोऽङ्गे॑अङ्ग॒ आर्पि॑त॒ उत्सि॑तश्च ।
वि ते मु॑च्यन्तं वि॒मुचो॒ हि सन्ति॑ भ्रूण॒घ्नि पू॑षन् दुरि॒तानि॑ मृक्ष्व ॥३॥