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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 091
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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यक्ष्मनाशनम्।
१-३ भृग्वङ्गिराः। यक्ष्मनाशनम्, ३ आपः। अनुष्टुप्।
इ॒मं यव॑मष्टायो॒गैः ष॑ड्यो॒गेभि॑रचर्कृषुः ।
तेना॑ ते त॒न्वो॒३रपो॑ ऽपा॒चीन॒मप॑ व्यये ॥१॥
न्य॑१ग्वातो॑ वाति॒ न्यऽक् तपति॑ सूर्यः॑ ।
नी॒चीन॑म॒घ्न्या दु॑हे॒ न्यऽग् भवतु ते॒ रपः॑ ॥२॥
आप॒ इद् वा उ॑ भेष॒जीरापो॑ अमीव॒चात॑नीः ।
आपो॑ विश्व॑स्य भेष॒जीस्तास्ते॑ कृण्वन्तु भेष॒जम्॥३॥