SELECT KANDA
SELECT SUKTA OF KANDA 06
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 090
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
A
A+
इषुनिष्कासनम्।
१-३ अथर्वा। रुद्रः। अनुष्टुप्, ३ आर्षी भुरिगुष्णिक्।
यां ते॑ रु॒द्र इषु॒मास्य॒दङ्गे॑भ्यो॒ हृद॑याय च ।
इ॒दं ताम॒द्य त्वद् व॒यं विषू॑चीं॒ वि वृ॑हामसि ॥१॥
यास्ते॑ श॒तं ध॒मन॒योऽङ्गा॒न्यनु॒ विष्ठि॑ताः ।
तासां॑ ते॒ सर्वा॑सां व॒यं निर्वि॒षाणि॑ ह्वयामसि ॥२॥
नम॑स्ते रु॒द्रास्य॑ते॒ नमः॒ प्रति॑हितायै ।
नमो॑ विसृ॒ज्यमा॑नायै॒ नमो॒ निप॑तितायै ॥३॥