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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 047
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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दीर्घायुः प्राप्तिः।
१-३ अङ्गिराः प्रचेताः। १ अग्निः, २ विश्वे देवाः, ३ सुधन्वा। त्रिष्टुप्।
अ॒ग्निः प्रा॑तःसव॒ने पा॑त्व॒स्मान् वै॑श्वान॒रो वि॑श्व॒कृद् वि॒श्वशं॑भूः ।
स नः॑ पाव॒को द्रवि॑णे दधा॒त्वायु॑ष्मन्तः सहभ॑क्षाः स्याम ॥१॥
विश्वे॑ दे॒वा म॒रुत॒ इन्द्रो॑ अ॒स्मान॒स्मिन् द्वि॒तीये॒ सव॑ने॒ न ज॑ह्युः ।
आयु॑ष्मन्तः प्रि॒यमे॑षां॒ वद॑न्तो व॒यं दे॒वानां॑ सुम॒तौ स्या॑म ॥२॥
इ॒दं तृ॒तीयं॒ सव॑नं कवी॒नामृ॒तेन॒ ये च॑म॒समैर॑यन्त ।
ते सौ॑धन्व॒नाः स्वऽरानशा॒नाः स्विऽष्टिं नो अ॒भि वस्यो॑ नयन्तु ॥३॥