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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 039
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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वर्चस्यम्।
१-३ अथर्वा (वर्चस्कामः)। (बृहस्पतिः), २ इन्द्रः, ३ इन्द्रः, अग्निः, सोमः,।
१ जगती, २ त्रिष्टुप्, ३ अनुष्टुप्।
यशो॑ ह॒विर्व॑र्धता॒मिन्द्र॑जूतं स॒हस्र॑वीर्यं॒ सुभृ॑तं॒ सह॑स्कृतम्।
प्र॒सर्स्रा॑ण॒मनु॑ दी॒र्घाय॒ चक्ष॑से ह॒विष्म॑न्तं मा वर्धय ज्ये॒ष्ठता॑तये ॥१॥
अच्छा॑ न॒ इन्द्रं॑ य॒शसं॒ यशो॑भिर्यश॒स्विनं॑ नमसा॒ना वि॑धेम ।
स नो॑ रास्व रा॒ष्ट्रमिन्द्र॑जूतं॒ तस्य॑ ते रा॒तौ य॒शसः॑ स्याम ॥२॥
य॒शा इन्द्रो॑ य॒शा अ॒ग्निर्य॒शाः सोमो॑ अजायत ।
य॒शा विश्व॑स्य भू॒तस्या॒हम॑स्मि य॒शस्त॑मः ॥३॥