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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 029
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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अरिष्टक्षयणम्।
१-३ भृगुः। यमः, निर्ऋतिः। (बृहती) १-२ विराण्नाम गायत्री, ३ त्र्यवसाना सप्तपदा विराडष्टिः।
अ॒मून् हे॒तिः प॑त॒त्रिणी॒ न्येऽतु॒ यदुलू॑को॒ वद॑ति मो॒घमे॒तत्।
यद् वा॑ क॒पोत॑ प॒दम॒ग्नौ कृ॒णोति॑ ॥१॥
यौ ते॑ दू॒तौ नि॑रृत इ॒दमे॒तोऽप्र॑हितौ॒ प्रहि॑तौ वा गृ॒हं नः॑ ।
क॒पो॒तो॒लू॒काभ्या॒मप॑दं॒ तद॑स्तु ॥२॥
अ॒वै॒र॒ह॒त्याये॒दमा प॑पत्यात् सुवी॒रता॑या इ॒दमा स॑सद्यात्।
परा॑ङे॒व परा॑ वद॒ परा॑ची॒मनु॑ सं॒वत॑म्।
यथा॑ य॒मस्य॑ त्वा गृ॒हेऽर॒सं प्र॑ति॒चाक॑शाना॒भूकं॑ प्रति॒चाक॑शान्॥३॥