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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 113
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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पापनाशनम्।
१-३ अथर्वा। पूषा। त्रिष्टुप्, ३ पङ्क्तिः।
त्रि॒ते दे॒वा अ॑मृजतै॒तदेन॑स्त्रि॒त ए॑नन्मनु॒ष्येऽषु ममृजे ।
ततो॒ यदि॑ त्वा॒ ग्राहि॑रान॒शे तां ते॑ दे॒वा ब्रह्म॑णा नाशयन्तु ॥१॥
मरी॑चीर्धू॒मान् प्र वि॒शानु॑ पाप्मन्नुदा॒रान् गच्छो॒त वा॑ नीहा॒रान्।
न॒दीनां॒ फेनाँ॒ अनु॒ तान् वि न॑श्य भ्रूण॒घ्नि पू॑षन् दुरि॒तानि॑ मृक्ष्व ॥२॥
द्वा॒द॒श॒धा निहि॑तं त्रि॒तस्याप॑मृष्टं मनुष्यैन॒सानि॑ ।
ततो॒ यदि॑ त्वा॒ ग्राहि॑रान॒शे तां ते॑ दे॒वा ब्रह्म॑णा नाशयन्तु ॥३॥