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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 108
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
A
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मेधावर्धनम्।
१-५ शौनकः। मेधा, ४ अग्निः। अनुष्टुप्, २ उरोबृहती, ३ पथ्यबृहती।
त्वं नो॑ मेधे प्रथ॒मा गोभि॒रश्वे॑भि॒रा ग॑हि ।
त्वं सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॒स्त्वं नो॑ असि य॒ज्ञिया॑ ॥१॥
मे॒धाम॒हं प्र॑थ॒मां ब्रह्म॑ण्वतीं॒ ब्रह्म॑जूता॒मृषि॑ष्टुताम्।
प्रपी॑तां ब्रह्मचा॒रिभि॑र्दे॒वाना॒मव॑से हुवे ॥२॥
यां मे॒धामृ॒भवो॑ वि॒दुर्यां मे॒धामसु॑रा वि॒दुः ।
ऋष॑यो भ॒द्रां मे॒धां यां वि॒दुस्तां मय्या वे॑शयामसि ॥३॥
यामृष॑यो भूत॒कृतो॑ मे॒धां मे॑धा॒विनो॑ वि॒दुः ।
तया॒ माम॒द्य मे॒धयाग्ने॑ मेधा॒विनं॑ कृणु ॥४॥
मे॒धां सा॒यं मे॒धां प्रा॒तर्मे॒धां म॒ध्यन्दि॑नं॒ परि॑ ।
मे॒धां सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॒र्वच॒सा वे॑शयामहे ॥५॥