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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 098
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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अजरं क्षत्रम्।
१-३ अथर्वाः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्, २ बृहतीगर्भास्तारपङ्क्तिः।
इन्द्रो॑ जयाति॒ न परा॑ जयाता अधिरा॒जो राज॑सु राजयातै ।
च॒र्कृत्य॒ ईड्यो॒ वन्द्य॑श्चोप॒सद्यो॑ नम॒स्योऽभवे॒ह॥१॥
त्वमि॑न्द्राधिरा॒जः श्र॑व॒स्युस्त्वं भू॑र॒भिभू॑ति॒र्जना॑नाम्।
त्वं दैवी॒र्विश॑ इ॒मा वि रा॒जायु॑ष्मत् क्ष॒त्रम॒जरं॑ ते अस्तु ॥२॥
प्राच्या॑ दि॒शस्त्वमि॑न्द्रासि॒ राजो॒तोदी॑च्या दि॒शो वृ॑त्रहन्छत्रु॒होऽसि ।
यत्र॒ यन्ति॑ स्रो॒त्यास्तज्जि॒तं ते॑ दक्षिण॒तो वृ॑ष॒भ ए॑षि॒ हव्यः॑ ॥३॥