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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 064
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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सांमनस्यम्।
१-३ अथर्वा। सांमनस्यम्, १ विश्वे देवाः। अनुष्टुप्, (२ त्रिष्टुप्)।
सं जा॑नीध्वं॒ सं पृ॑च्यध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम्।
दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥१॥
स॒मा॒नो मन्त्रः॒ समि॑तिः समा॒नी स॑मा॒नं व्र॒तं स॒ह चि॒त्तमे॑षाम्।
स॒मा॒नेन॑ वो ह॒विषा॑ जुहोमि समा॒नं चेतो॑ अभि॒संवि॑शध्वम्॥२॥
स॒मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः ।
स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ वः॒ सुस॒हास॑ति ॥३॥