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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 037
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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शापनाशनम्।
१-३ अथर्वा (स्वस्त्ययनकामः)। चन्द्रमाः। अनुष्टुप्।
उप॒ प्रागा॑त् सहस्रा॒क्षो यु॒क्त्वा श॒पथो॒ रथ॑म्।
श॒प्तार॑मन्वि॒छन् मम॒ वृक॑ इ॒वावि॑मतो गृ॒हम्॥१॥
परि॑ णो वृङ्ग्धि शपथ ह्र॒दम॒ग्निरि॑वा॒ दह॑न्।
श॒प्तार॒मत्र॑ नो जहि दि॒वो वृ॒क्षमि॑वा॒शनिः॑ ॥२॥
यो नः॒ शपा॒दश॑पतः॒ शप॑तो॒ यश्च॑ नः॒ शपा॑त्।
शुने॑ पेष्ट्र॑मि॒वाव॑क्षामं॒ तं प्रत्य॑स्यामि मृ॒त्यवे॑ ॥३॥