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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 137
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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केशवर्धनम्।
१-३ वीतहव्यः। वनस्पतिः। अनुष्टुप्।
यां ज॒मद॑ग्नि॒रख॑नद् दुहि॒त्रे के॑श॒वर्ध॑नीम्।
तां वी॒तह॑व्य॒ आभ॑र॒दसि॑तस्य गृ॒हेभ्यः॑ ॥१॥
अ॒भीशु॑ना॒ मेया॑ आसन् व्या॒मेना॑नु॒मेयाः॑ ।
केशा॑ न॒डा इ॑व वर्धन्तां शी॒र्ष्णस्ते॑ असि॒ताः परि॑ ॥२॥
दृंह॑ मूल॒माग्रं॑ यच्छ॒ वि मध्यं॑ यामयौषधे ।
केशा॑ न॒डा इ॑व वर्धन्तां शी॒र्ष्णस्ते॑ असि॒ताः परि॑ ॥३॥