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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 045
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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दुःष्वप्ननाशनम्।
१-३ अङ्गिराः प्रचेता, यमश्च। दुःष्वप्ननाशनम्। १ पथ्यापङ्क्तिः, २ भुरिक् त्रिष्टुप्, ३ अनुष्टुप्।
प॒रोऽपे॑हि मनस्पाप॒ किमश॑स्तानि शंससि ।
परे॑हि॒ न त्वा॑ कामये वृ॒क्षां वना॑नि॒ सं च॑र गृ॒हेषु॑ गोषु॑ मे॒ मनः॑ ॥१॥
अ॒व॒शसा॑ निः॒शसा॒ यत् प॑रा॒शसो॑पारि॒म जाग्र॑तो॒ यत् स्व॒पन्तः॑ ।
अ॒ग्निर्वि॑श्वा॒न्यप॑ दुष्कृ॒तान्यजु॑ष्टान्या॒रे अ॒स्मद् द॑धातु ॥२॥
यदि॑न्द्र ब्रह्मणस्प॒तेऽपि॒ मृषा॒ चरा॑मसि ।
प्रचे॑ता न आङ्गिर॒सो दु॑रि॒तात् पा॒त्वंह॑सः ॥३॥