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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 127
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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यक्ष्मनाशनम्।
१-३ भृग्वङ्गिराः। यक्ष्मनाशनम्, वनस्पतिः। अनुष्टुप्, ३ त्र्यवसाना षट्-पदा जगती।
वि॒द्र॒धस्य॑ ब॒लास॑स्य॒ लोहि॑तस्य वनस्पते ।
वि॒सल्प॑कस्योषधे॒ मोच्छि॑षः पिशि॒तं च॒न॥१॥
यौ ते॑ बलास॒ तिष्ठ॑तः॒ कक्षे॑ मु॒ष्कावप॑श्रितौ ।
वेदा॒हं तस्य॑ भेष॒जं ची॒पुद्रु॑रभि॒चक्ष॑णम्॥२॥
यो अङ्ग्यो॒ यः कर्ण्यो॒ यो अ॒क्ष्योर्वि॒सल्प॑कः ।
वि वृ॑हामो वि॒सल्प॑कं विद्र॒धं हृ॑दयाम॒यम्।
परा॒ तमज्ञा॑तं॒ यक्ष्म॑मध॒राञ्चं॑ सुवामसि ॥३॥