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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 123
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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सौमनसम्।
१-५ भृगुः। विश्वे देवाः। त्रिष्टुप्, ३ द्विपदा साम्म्यनुष्टुप्, ४ एकावसाना द्विपदा प्राजापत्या भुरिगनुष्टु।
ए॒तं स॑धस्थाः॒ परि॑ वो ददामि॒ यं शे॑व॒धिमा॒वहा॑ज्जा॒तवे॑दाः ।
अ॒न्वा॒ग॒न्ता यज॑मानः स्व॒स्ति तं स्म॑ जानीत पर॒मे व्योऽमन्॥१॥
जा॒नी॒त स्मै॑नं पर॒मे व्योऽम॒न् देवाः॒ सध॑स्था वि॒द लो॒कमत्र॑ ।
अ॒न्वा॒ग॒न्ता यज॑मानः स्व॒स्तीऽष्टापू॒र्तं स्म॑ कृणुता॒विर॑स्मै ॥२॥
देवाः॒ पित॑रः॒ पित॑रो॒ देवाः॑ ।
यो अस्मि॒ सो अ॑स्मि ॥३॥
स प॑चामि॒ स द॑दामि॒ ।
स य॑जे॒ स द॒त्तान्मा यू॑षम्॥४॥
नाके॑ राज॑न् प्रति॑ तिष्ठ॒ तत्रै॒तत् प्रति॑ तिष्ठतु ।
वि॒द्धि पू॒र्तस्य॑ नो राज॒न्त्स दे॑व सु॒मना॑ भव ॥५॥