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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 073
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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सांमनस्यम्।
१-३ अथर्वा। सांमनस्यम्, वरुणसोमाग्निबृहस्पतिवसवः, ३ वास्तोष्पतिः, १,३ भुरिक्, २ त्रिष्टुप्।
एह या॑तु॒ वरु॑णः॒ सोमो॑ अ॒ग्निर्बृह॒स्पति॒र्वसु॑भि॒रेह या॑तु ।
अ॒स्य श्रिय॑मुप॒संया॑त॒ सर्व॑ उ॒ग्रस्य॑ चे॒त्तुः संम॑नसः सजाताः ॥१॥
यो वः॒ शुष्मो॒ हृद॑येष्व॒न्तराकू॑ति॒र्या वो॒ मन॑सि॒ प्रवि॑ष्टा ।
तान्त्सी॑वयामि ह॒विषा॑ घृ॒तेन॒ मयि॑ सजाता र॒मति॑र्वो अस्तु ॥२॥
इ॒हैव स्त॒ माप॑ या॒ताध्य॒स्मत् पू॒षा प॒रस्ता॒दप॑थं वः कृणोतु ।
वास्तो॒ष्पति॒रनु॑ वो जोहवीतु॒ मयि॑ सजाता र॒मति॑र्वो अस्तु ॥३॥