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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 063
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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वर्चोबलप्राप्तिः।
१-४ द्रुणः। १ निर्ऋतिः, २ यमः, ३ मृत्युः, ४ अग्नि। १-3 जगती, २ अतिजगतीगर्भा, ४ अनुष्टुप्।
यत् ते॑ दे॒वी निरृ॑तिराब॒बन्ध॒ दाम॑ ग्री॒वास्व॑विमो॒क्यं यत्।
तत् ते वि ष्या॒म्यायु॑षे॒ वर्च॑से॒ बला॑यादोम॒दमन्न॑मद्धि॒ प्रसू॑तः ॥१॥
नमो॑ऽस्तु ते निरृते तिग्मतेजोऽय॒स्मया॒न् वि चृ॑ता बन्धपा॒शान्।
य॒मो मह्यं॒ पुन॒रित् त्वां द॑दाति॒ तस्मै॑ य॒माय॒ नमो॑ अस्तु मृ॒त्यवे॑ ॥२॥
अ॒य॒स्मये॑ द्रुप॒दे बे॑धिषे इ॒हाभिहि॑तो मृ॒त्युभि॒र्ये स॒हस्र॑म्।
य॒मेन॒ त्वं पि॒तृभिः॑ संविदा॒न उ॑त्त॒मं नाक॒मधि॑ रोहये॒मम्॥३॥
संस॒मिद् यु॑वसे वृष॒न्नग्ने॒ विश्वा॑न्य॒र्यृ आ।
इ॒डस्प॒दे समि॑ध्यसे॒ स नो॒ वसू॒न्या भ॑र ॥४॥