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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 061
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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विश्वस्रष्टा।
१-३ अथर्वा। रुद्रः। १ त्रिष्टुप्, २-३ भुरिक्।
मह्य॒मापो॒ मधु॑म॒देर॑यन्तां॒ मह्यं॒ सूरो॑ अभर॒ज्ज्योति॑षे॒ कम्।
मह्यं॑ दे॒वा उ॒त विश्वे॑ तपो॒जा मह्यं॑ दे॒वः स॑वि॒ता व्यचो॑ धात्॥१॥
अ॒हं वि॑वेच पृथि॒वीमु॒त द्याम॒हमृ॒तूंर॑जनयं स॒प्त सा॒कम्।
अ॒हं स॒त्यमनृ॑तं॒ यद् वदा॑म्य॒हं दैवीं॒ परि॒ वाचं॒ विश॑श्च ॥२॥
अ॒हं ज॑जान पृथि॒वीमु॒त द्याम॒हमृ॒तूंर॑जनयं स॒प्त सिन्धू॑न्।
अ॒हं स॒त्वमनृ॑तं॒ यद् वदा॑मि यो अ॑ग्नीषो॒मावजु॑षे॒ सखा॑या ॥३॥