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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 053
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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सर्वतो रक्षणम्।
१-३ बृहच्छुक्रः। १ द्यौः, पृथिवि, शुक्रः, सोमः, अग्निः, वायुः, सविता,
१ भगः, २ वैश्वानरः, ३ त्वष्टा। त्रिष्टुप्, १ जगती।
द्यौश्च॑ म इ॒दं पृ॑थि॒वी च॒ प्रचे॑तसौ शु॒क्रो बृ॒हन् दक्षि॑णया पिपर्तु ।
अनु॑ स्व॒धा चि॑कितां॒ सोमो॑ अ॒ग्निर्वा॒युर्नः॑ पातु सवि॒ता भग॑श्च ॥१॥
पुनः॑ प्रा॒णः पुन॑रा॒त्मा न॒ ऐतु॒ पुन॒श्चक्षुः॒ पुन॒रसु॑र्न॒ ऐतु॑ ।
वै॒श्वा॒न॒रो नो॒ अद॑ब्धस्तनू॒पा अ॒न्तस्ति॑ष्ठाति दुरि॒तानि॒ विश्वा॑ ॥२॥
सं वर्च॑सा॒ पय॑सा॒ सं त॒नूभि॒रग॑न्महि॒ मन॑सा॒ सं शि॒वेन॑ ।
त्वष्टा॑ नो॒ अत्र॒ वरी॑यः कृणो॒त्वनु॑ नो मार्ष्टु त॒न्वो॒३यद् विरि॑ष्टम्॥३॥