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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 132
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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स्मरः।
१-५ अथर्वाङ्गिराः। स्मरः। अनुष्टुप्, १ त्रिपदा अनुष्टुप्, २,४,५ बृहती, ३ भुरिक्।
यं दे॒वाः स्म॒रमसि॑ञ्चन्न॒प्स्व१न्तः शोशु॑चानं स॒हाध्या।
तं ते॑ तपामि॒ वरु॑णस्य॒ धर्म॑णा ॥१॥
यं विश्वे॑ दे॒वाः स्म॒रमसि॑ञ्चन्न॒प्स्व१न्तः शोशु॑चानं स॒हाध्या।
तं ते॑ तपामि॒ वरु॑णस्य॒ धर्म॑णा ॥२॥
यमि॑न्द्रा॒णी स्म॒रमसि॑ञ्चद॒प्स्व॑१न्तः शोशु॑चानं स॒हाध्या।
तं ते॑ तपामि॒ वरु॑णस्य॒ धर्म॑णा ॥३॥
यमि॑न्द्रा॒ग्नी स्म॒रमसि॑ञ्चताम॒प्स्व॑१न्तः शोशु॑चानं स॒हाध्या।
तं ते॑ तपामि॒ वरु॑णस्य॒ धर्म॑णा ॥४॥
यं मि॒त्रावरु॑णौ स्म॒रमसि॑ञ्चताम॒प्स्व॑१न्तः शोशु॑चानं स॒हाध्या।
तं ते॑ तपामि॒ वरु॑णस्य॒ धर्म॑णा ॥५॥