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Atharvaveda Shaunaka Samhita – Kanda 06 Sukta 027
By Dr. Sachchidanand Pathak, U.P. Sanskrit Sansthan, Lucknow, India.
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अरिष्टक्षयणम्।
१-३ भृगुः। यमः, निर्ऋतिः। जगती, २ त्रिष्टुप्।
देवाः॑ क॒पोत॑ इषि॒तो यदि॒छन् दू॒तो निरृ॑त्या इ॒दमा॑ज॒गाम॑ ।
तस्मा॑ अर्चाम कृ॒णवा॑म॒ निष्कृ॑तिं॒ शं नो अस्तु द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥१॥
शि॒वः क॒पोत॒ इषि॒तो नो॑ अस्त्वना॒गा दे॑वाः शकु॒नो गृ॒हं नः॑ ।
अ॒ग्निर्हि विप्रो॑ जु॒षतां॑ ह॒विर्नः॒ परि॑ हे॒तिः प॒क्षिणी॑ नो वृणक्तु ॥२॥
हे॒तिः प॒क्षिणी॒ न द॑भात्य॒स्माना॒ष्ट्री प॒दं कृ॑णुते अग्नि॒धाने॑ ।
शि॒वो गोभ्य॑ उ॒त पुरु॑षेभ्यो नो अस्तु॒ मा नो॑ देवा इ॒ह हिं॑सीत् क॒पोतः॑ ॥३॥