SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 09
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 09 Sukta 093
A
A+
५ नोधा गौतम: । पवमान: सोम: । त्रिष्टुप् ।
सा॒क॒मुक्षो॑ मर्जयन्त॒ स्वसा॑रो॒ दश॒ धीर॑स्य धी॒तयो॒ धनु॑त्रीः ।
हरि॒: पर्य॑द्रव॒ज्जाः सूर्य॑स्य॒ द्रोणं॑ ननक्षे॒ अत्यो॒ न वा॒जी ॥१॥
सं मा॒तृभि॒र्न शिशु॑र्वावशा॒नो वृषा॑ दधन्वे पुरु॒वारो॑ अ॒द्भिः ।
मर्यो॒ न योषा॑म॒भि नि॑ष्कृ॒तं यन्त्सं ग॑च्छते क॒लश॑ उ॒स्रिया॑भिः ॥२॥
उ॒त प्र पि॑प्य॒ ऊध॒रघ्न्या॑या॒ इन्दु॒र्धारा॑भिः सचते सुमे॒धाः ।
मू॒र्धानं॒ गाव॒: पय॑सा च॒मूष्व॒भि श्री॑णन्ति॒ वसु॑भि॒र्न नि॒क्तैः ॥३॥
स नो॑ दे॒वेभि॑: पवमान र॒देन्दो॑ र॒यिम॒श्विनं॑ वावशा॒नः ।
र॒थि॒रा॒यता॑मुश॒ती पुरं॑धिरस्म॒द्र्य१गा दा॒वने॒ वसू॑नाम् ॥४॥
नू नो॑ र॒यिमुप॑ मास्व नृ॒वन्तं॑ पुना॒नो वा॒ताप्यं॑ वि॒श्वश्च॑न्द्रम् ।
प्र व॑न्दि॒तुरि॑न्दो ता॒र्यायु॑: प्रा॒तर्म॒क्षू धि॒याव॑सुर्जगम्यात् ॥५॥
सा॒क॒मुक्षो॑ मर्जयन्त॒ स्वसा॑रो॒ दश॒ धीर॑स्य धी॒तयो॒ धनु॑त्रीः ।
हरि॒: पर्य॑द्रव॒ज्जाः सूर्य॑स्य॒ द्रोणं॑ ननक्षे॒ अत्यो॒ न वा॒जी ॥१॥
सं मा॒तृभि॒र्न शिशु॑र्वावशा॒नो वृषा॑ दधन्वे पुरु॒वारो॑ अ॒द्भिः ।
मर्यो॒ न योषा॑म॒भि नि॑ष्कृ॒तं यन्त्सं ग॑च्छते क॒लश॑ उ॒स्रिया॑भिः ॥२॥
उ॒त प्र पि॑प्य॒ ऊध॒रघ्न्या॑या॒ इन्दु॒र्धारा॑भिः सचते सुमे॒धाः ।
मू॒र्धानं॒ गाव॒: पय॑सा च॒मूष्व॒भि श्री॑णन्ति॒ वसु॑भि॒र्न नि॒क्तैः ॥३॥
स नो॑ दे॒वेभि॑: पवमान र॒देन्दो॑ र॒यिम॒श्विनं॑ वावशा॒नः ।
र॒थि॒रा॒यता॑मुश॒ती पुरं॑धिरस्म॒द्र्य१गा दा॒वने॒ वसू॑नाम् ॥४॥
नू नो॑ र॒यिमुप॑ मास्व नृ॒वन्तं॑ पुना॒नो वा॒ताप्यं॑ वि॒श्वश्च॑न्द्रम् ।
प्र व॑न्दि॒तुरि॑न्दो ता॒र्यायु॑: प्रा॒तर्म॒क्षू धि॒याव॑सुर्जगम्यात् ॥५॥