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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 09 Sukta 079
A
A+
५ कविर्भार्गव: । पवमान: सोम: ।जगती ।
अ॒चो॒दसो॑ नो धन्व॒न्त्विन्द॑व॒: प्र सु॑वा॒नासो॑ बृ॒हद्दि॑वेषु॒ हर॑यः ।
वि च॒ नश॑न्न इ॒षो अरा॑तयो॒ऽर्यो न॑शन्त॒ सनि॑षन्त नो॒ धिय॑: ॥१॥
प्र णो॑ धन्व॒न्त्विन्द॑वो मद॒च्युतो॒ धना॑ वा॒ येभि॒रर्व॑तो जुनी॒मसि॑ ।
ति॒रो मर्त॑स्य॒ कस्य॑ चि॒त्परि॑ह्वृतिं व॒यं धना॑नि वि॒श्वधा॑ भरेमहि ॥२॥
उ॒त स्वस्या॒ अरा॑त्या अ॒रिर्हि ष उ॒तान्यस्या॒ अरा॑त्या॒ वृको॒ हि षः ।
धन्व॒न्न तृष्णा॒ सम॑रीत॒ ताँ अ॒भि सोम॑ ज॒हि प॑वमान दुरा॒ध्य॑: ॥३॥
दि॒वि ते॒ नाभा॑ पर॒मो य आ॑द॒दे पृ॑थि॒व्यास्ते॑ रुरुहु॒: सान॑वि॒ क्षिप॑: ।
अद्र॑यस्त्वा बप्सति॒ गोरधि॑ त्व॒च्य१प्सु त्वा॒ हस्तै॑र्दुदुहुर्मनी॒षिण॑: ॥४॥
ए॒वा त॑ इन्दो सु॒भ्वं॑ सु॒पेश॑सं॒ रसं॑ तुञ्जन्ति प्रथ॒मा अ॑भि॒श्रिय॑: ।
निदं॑निदं पवमान॒ नि ता॑रिष आ॒विस्ते॒ शुष्मो॑ भवतु प्रि॒यो मद॑: ॥५॥
अ॒चो॒दसो॑ नो धन्व॒न्त्विन्द॑व॒: प्र सु॑वा॒नासो॑ बृ॒हद्दि॑वेषु॒ हर॑यः ।
वि च॒ नश॑न्न इ॒षो अरा॑तयो॒ऽर्यो न॑शन्त॒ सनि॑षन्त नो॒ धिय॑: ॥१॥
प्र णो॑ धन्व॒न्त्विन्द॑वो मद॒च्युतो॒ धना॑ वा॒ येभि॒रर्व॑तो जुनी॒मसि॑ ।
ति॒रो मर्त॑स्य॒ कस्य॑ चि॒त्परि॑ह्वृतिं व॒यं धना॑नि वि॒श्वधा॑ भरेमहि ॥२॥
उ॒त स्वस्या॒ अरा॑त्या अ॒रिर्हि ष उ॒तान्यस्या॒ अरा॑त्या॒ वृको॒ हि षः ।
धन्व॒न्न तृष्णा॒ सम॑रीत॒ ताँ अ॒भि सोम॑ ज॒हि प॑वमान दुरा॒ध्य॑: ॥३॥
दि॒वि ते॒ नाभा॑ पर॒मो य आ॑द॒दे पृ॑थि॒व्यास्ते॑ रुरुहु॒: सान॑वि॒ क्षिप॑: ।
अद्र॑यस्त्वा बप्सति॒ गोरधि॑ त्व॒च्य१प्सु त्वा॒ हस्तै॑र्दुदुहुर्मनी॒षिण॑: ॥४॥
ए॒वा त॑ इन्दो सु॒भ्वं॑ सु॒पेश॑सं॒ रसं॑ तुञ्जन्ति प्रथ॒मा अ॑भि॒श्रिय॑: ।
निदं॑निदं पवमान॒ नि ता॑रिष आ॒विस्ते॒ शुष्मो॑ भवतु प्रि॒यो मद॑: ॥५॥