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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 09 Sukta 020
A
A+
७ काश्यपोऽसितो देवलो वा । पवमान: सोम: । गायत्री ।
प्र क॒विर्दे॒ववी॑त॒येऽव्यो॒ वारे॑भिरर्षति । सा॒ह्वान्विश्वा॑ अ॒भि स्पृध॑: ॥१॥
स हि ष्मा॑ जरि॒तृभ्य॒ आ वाजं॒ गोम॑न्त॒मिन्व॑ति । पव॑मानः सह॒स्रिण॑म् ॥२॥
परि॒ विश्वा॑नि॒ चेत॑सा मृ॒शसे॒ पव॑से म॒ती । स न॑: सोम॒ श्रवो॑ विदः ॥३॥
अ॒भ्य॑र्ष बृ॒हद्यशो॑ म॒घव॑द्भ्यो ध्रु॒वं र॒यिम् । इषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥४॥
त्वं राजे॑व सुव्र॒तो गिर॑: सो॒मा वि॑वेशिथ । पु॒ना॒नो व॑ह्ने अद्भुत ॥५॥
स वह्नि॑र॒प्सु दु॒ष्टरो॑ मृ॒ज्यमा॑नो॒ गभ॑स्त्योः । सोम॑श्च॒मूषु॑ सीदति ॥६॥
क्री॒ळुर्म॒खो न मं॑ह॒युः प॒वित्रं॑ सोम गच्छसि । दध॑त्स्तो॒त्रे सु॒वीर्य॑म् ॥७॥
प्र क॒विर्दे॒ववी॑त॒येऽव्यो॒ वारे॑भिरर्षति । सा॒ह्वान्विश्वा॑ अ॒भि स्पृध॑: ॥१॥
स हि ष्मा॑ जरि॒तृभ्य॒ आ वाजं॒ गोम॑न्त॒मिन्व॑ति । पव॑मानः सह॒स्रिण॑म् ॥२॥
परि॒ विश्वा॑नि॒ चेत॑सा मृ॒शसे॒ पव॑से म॒ती । स न॑: सोम॒ श्रवो॑ विदः ॥३॥
अ॒भ्य॑र्ष बृ॒हद्यशो॑ म॒घव॑द्भ्यो ध्रु॒वं र॒यिम् । इषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥४॥
त्वं राजे॑व सुव्र॒तो गिर॑: सो॒मा वि॑वेशिथ । पु॒ना॒नो व॑ह्ने अद्भुत ॥५॥
स वह्नि॑र॒प्सु दु॒ष्टरो॑ मृ॒ज्यमा॑नो॒ गभ॑स्त्योः । सोम॑श्च॒मूषु॑ सीदति ॥६॥
क्री॒ळुर्म॒खो न मं॑ह॒युः प॒वित्रं॑ सोम गच्छसि । दध॑त्स्तो॒त्रे सु॒वीर्य॑म् ॥७॥