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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 09 Sukta 017
A
A+
८ काश्यपोऽसितो देवलो वा । पवमान: सोम: । गायत्री ।
प्र नि॒म्नेने॑व॒ सिन्ध॑वो॒ घ्नन्तो॑ वृ॒त्राणि॒ भूर्ण॑यः । सोमा॑ असृग्रमा॒शव॑: ॥१॥
अ॒भि सु॑वा॒नास॒ इन्द॑वो वृ॒ष्टय॑: पृथि॒वीमि॑व । इन्द्रं॒ सोमा॑सो अक्षरन् ॥२॥
अत्यू॑र्मिर्मत्स॒रो मद॒: सोम॑: प॒वित्रे॑ अर्षति । वि॒घ्नन्रक्षां॑सि देव॒युः ॥३॥
आ क॒लशे॑षु धावति प॒वित्रे॒ परि॑ षिच्यते । उ॒क्थैर्य॒ज्ञेषु॑ वर्धते ॥४॥
अति॒ त्री सो॑म रोच॒ना रोह॒न्न भ्रा॑जसे॒ दिव॑म् । इ॒ष्णन्त्सूर्यं॒ न चो॑दयः ॥५॥
अ॒भि विप्रा॑ अनूषत मू॒र्धन्य॒ज्ञस्य॑ का॒रव॑: । दधा॑ना॒श्चक्ष॑सि प्रि॒यम् ॥६॥
तमु॑ त्वा वा॒जिनं॒ नरो॑ धी॒भिर्विप्रा॑ अव॒स्यव॑: । मृ॒जन्ति॑ दे॒वता॑तये ॥७॥
मधो॒र्धारा॒मनु॑ क्षर ती॒व्रः स॒धस्थ॒मास॑दः । चारु॑ॠ॒ताय॑ पी॒तये॑ ॥८॥
प्र नि॒म्नेने॑व॒ सिन्ध॑वो॒ घ्नन्तो॑ वृ॒त्राणि॒ भूर्ण॑यः । सोमा॑ असृग्रमा॒शव॑: ॥१॥
अ॒भि सु॑वा॒नास॒ इन्द॑वो वृ॒ष्टय॑: पृथि॒वीमि॑व । इन्द्रं॒ सोमा॑सो अक्षरन् ॥२॥
अत्यू॑र्मिर्मत्स॒रो मद॒: सोम॑: प॒वित्रे॑ अर्षति । वि॒घ्नन्रक्षां॑सि देव॒युः ॥३॥
आ क॒लशे॑षु धावति प॒वित्रे॒ परि॑ षिच्यते । उ॒क्थैर्य॒ज्ञेषु॑ वर्धते ॥४॥
अति॒ त्री सो॑म रोच॒ना रोह॒न्न भ्रा॑जसे॒ दिव॑म् । इ॒ष्णन्त्सूर्यं॒ न चो॑दयः ॥५॥
अ॒भि विप्रा॑ अनूषत मू॒र्धन्य॒ज्ञस्य॑ का॒रव॑: । दधा॑ना॒श्चक्ष॑सि प्रि॒यम् ॥६॥
तमु॑ त्वा वा॒जिनं॒ नरो॑ धी॒भिर्विप्रा॑ अव॒स्यव॑: । मृ॒जन्ति॑ दे॒वता॑तये ॥७॥
मधो॒र्धारा॒मनु॑ क्षर ती॒व्रः स॒धस्थ॒मास॑दः । चारु॑ॠ॒ताय॑ पी॒तये॑ ॥८॥