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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 09 Sukta 084
A
A+
५ वाच्य: प्रजापति: । पवमान: सोम: ।जगती ।
पव॑स्व देव॒माद॑नो॒ विच॑र्षणिर॒प्सा इन्द्रा॑य॒ वरु॑णाय वा॒यवे॑ ।
कृ॒धी नो॑ अ॒द्य वरि॑वः स्वस्ति॒मदु॑रुक्षि॒तौ गृ॑णीहि॒ दैव्यं॒ जन॑म् ॥१॥
आ यस्त॒स्थौ भुव॑ना॒न्यम॑र्त्यो॒ विश्वा॑नि॒ सोम॒: परि॒ तान्य॑र्षति ।
कृ॒ण्वन्त्सं॒चृतं॑ वि॒चृत॑म॒भिष्ट॑य॒ इन्दु॑: सिषक्त्यु॒षसं॒ न सूर्य॑: ॥२॥
आ यो गोभि॑: सृ॒ज्यत॒ ओष॑धी॒ष्वा दे॒वानां॑ सु॒म्न इ॒षय॒न्नुपा॑वसुः ।
आ वि॒द्युता॑ पवते॒ धार॑या सु॒त इन्द्रं॒ सोमो॑ मा॒दय॒न्दैव्यं॒ जन॑म् ॥३॥
ए॒ष स्य सोम॑: पवते सहस्र॒जिद्धि॑न्वा॒नो वाच॑मिषि॒रामु॑ष॒र्बुध॑म् ।
इन्दु॑: समु॒द्रमुदि॑यर्ति वा॒युभि॒रेन्द्र॑स्य॒ हार्दि॑ क॒लशे॑षु सीदति ॥४॥
अ॒भि त्यं गाव॒: पय॑सा पयो॒वृधं॒ सोमं॑ श्रीणन्ति म॒तिभि॑: स्व॒र्विद॑म् ।
ध॒नं॒ज॒यः प॑वते॒ कृत्व्यो॒ रसो॒ विप्र॑: क॒विः काव्ये॑ना॒ स्व॑र्चनाः ॥५॥
पव॑स्व देव॒माद॑नो॒ विच॑र्षणिर॒प्सा इन्द्रा॑य॒ वरु॑णाय वा॒यवे॑ ।
कृ॒धी नो॑ अ॒द्य वरि॑वः स्वस्ति॒मदु॑रुक्षि॒तौ गृ॑णीहि॒ दैव्यं॒ जन॑म् ॥१॥
आ यस्त॒स्थौ भुव॑ना॒न्यम॑र्त्यो॒ विश्वा॑नि॒ सोम॒: परि॒ तान्य॑र्षति ।
कृ॒ण्वन्त्सं॒चृतं॑ वि॒चृत॑म॒भिष्ट॑य॒ इन्दु॑: सिषक्त्यु॒षसं॒ न सूर्य॑: ॥२॥
आ यो गोभि॑: सृ॒ज्यत॒ ओष॑धी॒ष्वा दे॒वानां॑ सु॒म्न इ॒षय॒न्नुपा॑वसुः ।
आ वि॒द्युता॑ पवते॒ धार॑या सु॒त इन्द्रं॒ सोमो॑ मा॒दय॒न्दैव्यं॒ जन॑म् ॥३॥
ए॒ष स्य सोम॑: पवते सहस्र॒जिद्धि॑न्वा॒नो वाच॑मिषि॒रामु॑ष॒र्बुध॑म् ।
इन्दु॑: समु॒द्रमुदि॑यर्ति वा॒युभि॒रेन्द्र॑स्य॒ हार्दि॑ क॒लशे॑षु सीदति ॥४॥
अ॒भि त्यं गाव॒: पय॑सा पयो॒वृधं॒ सोमं॑ श्रीणन्ति म॒तिभि॑: स्व॒र्विद॑म् ।
ध॒नं॒ज॒यः प॑वते॒ कृत्व्यो॒ रसो॒ विप्र॑: क॒विः काव्ये॑ना॒ स्व॑र्चनाः ॥५॥