SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 09
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 09 Sukta 014
A
A+
८ काश्यपोऽसितो देवलो वा । पवमान: सोम: । गायत्री ।
परि॒ प्रासि॑ष्यदत्क॒विः सिन्धो॑रू॒र्मावधि॑ श्रि॒तः । का॒रं बिभ्र॑त्पुरु॒स्पृह॑म् ॥१॥
गि॒रा यदी॒ सब॑न्धव॒: पञ्च॒ व्राता॑ अप॒स्यव॑: । प॒रि॒ष्कृ॒ण्वन्ति॑ धर्ण॒सिम् ॥२॥
आद॑स्य शु॒ष्मिणो॒ रसे॒ विश्वे॑ दे॒वा अ॑मत्सत । यदी॒ गोभि॑र्वसा॒यते॑ ॥३॥
नि॒रि॒णा॒नो वि धा॑वति॒ जह॒च्छर्या॑णि॒ तान्वा॑ । अत्रा॒ सं जि॑घ्नते यु॒जा ॥४॥
न॒प्तीभि॒र्यो वि॒वस्व॑तः शु॒भ्रो न मा॑मृ॒जे युवा॑ । गाः कृ॑ण्वा॒नो न नि॒र्णिज॑म् ॥५॥
अति॑ श्रि॒ती ति॑र॒श्चता॑ ग॒व्या जि॑गा॒त्यण्व्या॑ । व॒ग्नुमि॑यर्ति॒ यं वि॒दे ॥६॥
अ॒भि क्षिप॒: सम॑ग्मत म॒र्जय॑न्तीरि॒षस्पति॑म् । पृ॒ष्ठा गृ॑भ्णत वा॒जिन॑: ॥७॥
परि॑ दि॒व्यानि॒ मर्मृ॑श॒द्विश्वा॑नि सोम॒ पार्थि॑वा । वसू॑नि याह्यस्म॒युः ॥८॥
परि॒ प्रासि॑ष्यदत्क॒विः सिन्धो॑रू॒र्मावधि॑ श्रि॒तः । का॒रं बिभ्र॑त्पुरु॒स्पृह॑म् ॥१॥
गि॒रा यदी॒ सब॑न्धव॒: पञ्च॒ व्राता॑ अप॒स्यव॑: । प॒रि॒ष्कृ॒ण्वन्ति॑ धर्ण॒सिम् ॥२॥
आद॑स्य शु॒ष्मिणो॒ रसे॒ विश्वे॑ दे॒वा अ॑मत्सत । यदी॒ गोभि॑र्वसा॒यते॑ ॥३॥
नि॒रि॒णा॒नो वि धा॑वति॒ जह॒च्छर्या॑णि॒ तान्वा॑ । अत्रा॒ सं जि॑घ्नते यु॒जा ॥४॥
न॒प्तीभि॒र्यो वि॒वस्व॑तः शु॒भ्रो न मा॑मृ॒जे युवा॑ । गाः कृ॑ण्वा॒नो न नि॒र्णिज॑म् ॥५॥
अति॑ श्रि॒ती ति॑र॒श्चता॑ ग॒व्या जि॑गा॒त्यण्व्या॑ । व॒ग्नुमि॑यर्ति॒ यं वि॒दे ॥६॥
अ॒भि क्षिप॒: सम॑ग्मत म॒र्जय॑न्तीरि॒षस्पति॑म् । पृ॒ष्ठा गृ॑भ्णत वा॒जिन॑: ॥७॥
परि॑ दि॒व्यानि॒ मर्मृ॑श॒द्विश्वा॑नि सोम॒ पार्थि॑वा । वसू॑नि याह्यस्म॒युः ॥८॥