SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 124
A
A+
९ अग्नि:, १,५-९ अग्नि-वरुण-सोमाः। १अग्निः,२-४ अग्नेरात्माः, ५,७-८ वरुण:, ६ सोमः, ९ इन्द्रः। त्रिष्टुप् ७ जगती।
इ॒मं नो॑ अग्न॒ उप॑ य॒ज्ञमेहि॒ पञ्च॑यामं त्रि॒वृतं॑ स॒प्तत॑न्तुम् ।
असो॑ हव्य॒वाळु॒त न॑: पुरो॒गा ज्योगे॒व दी॒र्घं तम॒ आश॑यिष्ठाः ॥१॥
अदे॑वाद्दे॒वः प्र॒चता॒ गुहा॒ यन्प्र॒पश्य॑मानो अमृत॒त्वमे॑मि ।
शि॒वं यत्सन्त॒मशि॑वो॒ जहा॑मि॒ स्वात्स॒ख्यादर॑णीं॒ नाभि॑मेमि ॥२॥
पश्य॑न्न॒न्यस्या॒ अति॑थिं व॒याया॑ ऋ॒तस्य॒ धाम॒ वि मि॑मे पु॒रूणि॑ ।
शंसा॑मि पि॒त्रे असु॑राय॒ शेव॑मयज्ञि॒याद्य॒ज्ञियं॑ भा॒गमे॑मि ॥३॥
ब॒ह्वीः समा॑ अकरम॒न्तर॑स्मि॒न्निन्द्रं॑ वृणा॒नः पि॒तरं॑ जहामि ।
अ॒ग्निः सोमो॒ वरु॑ण॒स्ते च्य॑वन्ते प॒र्याव॑र्द्रा॒ष्ट्रं तद॑वाम्या॒यन् ॥४॥
निर्मा॑या उ॒ त्ये असु॑रा अभूव॒न्त्वं च॑ मा वरुण का॒मया॑से ।
ऋ॒तेन॑ राज॒न्ननृ॑तं विवि॒ञ्चन्मम॑ रा॒ष्ट्रस्याधि॑पत्य॒मेहि॑ ॥५॥
इ॒दं स्व॑रि॒दमिदा॑स वा॒मम॒यं प्र॑का॒श उ॒र्व१न्तरि॑क्षम् ।
हना॑व वृ॒त्रं नि॒रेहि॑ सोम ह॒विष्ट्वा॒ सन्तं॑ ह॒विषा॑ यजाम ॥६॥
क॒विः क॑वि॒त्वा दि॒वि रू॒पमास॑ज॒दप्र॑भूती॒ वरु॑णो॒ निर॒पः सृ॑जत् ।
क्षेमं॑ कृण्वा॒ना जन॑यो॒ न सिन्ध॑व॒स्ता अ॑स्य॒ वर्णं॒ शुच॑यो भरिभ्रति ॥७॥
ता अ॑स्य॒ ज्येष्ठ॑मिन्द्रि॒यं स॑चन्ते॒ ता ई॒मा क्षे॑ति स्व॒धया॒ मद॑न्तीः ।
ता ईं॒ विशो॒ न राजा॑नं वृणा॒ना बी॑भ॒त्सुवो॒ अप॑ वृ॒त्राद॑तिष्ठन् ॥८॥
बी॒भ॒त्सूनां॑ स॒युजं॑ हं॒समा॑हुर॒पां दि॒व्यानां॑ स॒ख्ये चर॑न्तम् ।
अ॒नु॒ष्टुभ॒मनु॑ चर्चू॒र्यमा॑ण॒मिन्द्रं॒ नि चि॑क्युः क॒वयो॑ मनी॒षा ॥९॥
इ॒मं नो॑ अग्न॒ उप॑ य॒ज्ञमेहि॒ पञ्च॑यामं त्रि॒वृतं॑ स॒प्तत॑न्तुम् ।
असो॑ हव्य॒वाळु॒त न॑: पुरो॒गा ज्योगे॒व दी॒र्घं तम॒ आश॑यिष्ठाः ॥१॥
अदे॑वाद्दे॒वः प्र॒चता॒ गुहा॒ यन्प्र॒पश्य॑मानो अमृत॒त्वमे॑मि ।
शि॒वं यत्सन्त॒मशि॑वो॒ जहा॑मि॒ स्वात्स॒ख्यादर॑णीं॒ नाभि॑मेमि ॥२॥
पश्य॑न्न॒न्यस्या॒ अति॑थिं व॒याया॑ ऋ॒तस्य॒ धाम॒ वि मि॑मे पु॒रूणि॑ ।
शंसा॑मि पि॒त्रे असु॑राय॒ शेव॑मयज्ञि॒याद्य॒ज्ञियं॑ भा॒गमे॑मि ॥३॥
ब॒ह्वीः समा॑ अकरम॒न्तर॑स्मि॒न्निन्द्रं॑ वृणा॒नः पि॒तरं॑ जहामि ।
अ॒ग्निः सोमो॒ वरु॑ण॒स्ते च्य॑वन्ते प॒र्याव॑र्द्रा॒ष्ट्रं तद॑वाम्या॒यन् ॥४॥
निर्मा॑या उ॒ त्ये असु॑रा अभूव॒न्त्वं च॑ मा वरुण का॒मया॑से ।
ऋ॒तेन॑ राज॒न्ननृ॑तं विवि॒ञ्चन्मम॑ रा॒ष्ट्रस्याधि॑पत्य॒मेहि॑ ॥५॥
इ॒दं स्व॑रि॒दमिदा॑स वा॒मम॒यं प्र॑का॒श उ॒र्व१न्तरि॑क्षम् ।
हना॑व वृ॒त्रं नि॒रेहि॑ सोम ह॒विष्ट्वा॒ सन्तं॑ ह॒विषा॑ यजाम ॥६॥
क॒विः क॑वि॒त्वा दि॒वि रू॒पमास॑ज॒दप्र॑भूती॒ वरु॑णो॒ निर॒पः सृ॑जत् ।
क्षेमं॑ कृण्वा॒ना जन॑यो॒ न सिन्ध॑व॒स्ता अ॑स्य॒ वर्णं॒ शुच॑यो भरिभ्रति ॥७॥
ता अ॑स्य॒ ज्येष्ठ॑मिन्द्रि॒यं स॑चन्ते॒ ता ई॒मा क्षे॑ति स्व॒धया॒ मद॑न्तीः ।
ता ईं॒ विशो॒ न राजा॑नं वृणा॒ना बी॑भ॒त्सुवो॒ अप॑ वृ॒त्राद॑तिष्ठन् ॥८॥
बी॒भ॒त्सूनां॑ स॒युजं॑ हं॒समा॑हुर॒पां दि॒व्यानां॑ स॒ख्ये चर॑न्तम् ।
अ॒नु॒ष्टुभ॒मनु॑ चर्चू॒र्यमा॑ण॒मिन्द्रं॒ नि चि॑क्युः क॒वयो॑ मनी॒षा ॥९॥