SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 130
A
A+
७ यज्ञः प्राजापत्यः। भाववृत्तम्। त्रिष्टुप् , १ जगती।
यो य॒ज्ञो वि॒श्वत॒स्तन्तु॑भिस्त॒त एक॑शतं देवक॒र्मेभि॒राय॑तः ।
इ॒मे व॑यन्ति पि॒तरो॒ य आ॑य॒युः प्र व॒याप॑ व॒येत्या॑सते त॒ते ॥१॥
पुमाँ॑ एनं तनुत॒ उत्कृ॑णत्ति॒ पुमा॒न्वि त॑त्ने॒ अधि॒ नाके॑ अ॒स्मिन् ।
इ॒मे म॒यूखा॒ उप॑ सेदुरू॒ सद॒: सामा॑नि चक्रु॒स्तस॑रा॒ण्योत॑वे ॥२॥
कासी॑त्प्र॒मा प्र॑ति॒मा किं नि॒दान॒माज्यं॒ किमा॑सीत्परि॒धिः क आ॑सीत् ।
छन्द॒: किमा॑सी॒त्प्रउ॑गं॒ किमु॒क्थं यद्दे॒वा दे॒वमय॑जन्त॒ विश्वे॑ ॥३॥
अ॒ग्नेर्गा॑य॒त्र्य॑भवत्स॒युग्वो॒ष्णिह॑या सवि॒ता सं ब॑भूव ।
अ॒नु॒ष्टुभा॒ सोम॑ उ॒क्थैर्मह॑स्वा॒न्बृह॒स्पते॑र्बृह॒ती वाच॑मावत् ॥४॥
वि॒राण्मि॒त्रावरु॑णयोरभि॒श्रीरिन्द्र॑स्य त्रि॒ष्टुबि॒ह भा॒गो अह्न॑: ।
विश्वा॑न्दे॒वाञ्जग॒त्या वि॑वेश॒ तेन॑ चाकॢप्र॒ ऋष॑यो मनु॒ष्या॑: ॥५॥
चा॒कॢ॒प्रे तेन॒ ऋष॑यो मनु॒ष्या॑ य॒ज्ञे जा॒ते पि॒तरो॑ नः पुरा॒णे ।
पश्य॑न्मन्ये॒ मन॑सा॒ चक्ष॑सा॒ तान्य इ॒मं य॒ज्ञमय॑जन्त॒ पूर्वे॑ ॥६॥
स॒हस्तो॑माः स॒हछ॑न्दस आ॒वृत॑: स॒हप्र॑मा॒ ऋष॑यः स॒प्त दैव्या॑: ।
पूर्वे॑षां॒ पन्था॑मनु॒दृश्य॒ धीरा॑ अ॒न्वाले॑भिरे र॒थ्यो॒३ न र॒श्मीन् ॥७॥
यो य॒ज्ञो वि॒श्वत॒स्तन्तु॑भिस्त॒त एक॑शतं देवक॒र्मेभि॒राय॑तः ।
इ॒मे व॑यन्ति पि॒तरो॒ य आ॑य॒युः प्र व॒याप॑ व॒येत्या॑सते त॒ते ॥१॥
पुमाँ॑ एनं तनुत॒ उत्कृ॑णत्ति॒ पुमा॒न्वि त॑त्ने॒ अधि॒ नाके॑ अ॒स्मिन् ।
इ॒मे म॒यूखा॒ उप॑ सेदुरू॒ सद॒: सामा॑नि चक्रु॒स्तस॑रा॒ण्योत॑वे ॥२॥
कासी॑त्प्र॒मा प्र॑ति॒मा किं नि॒दान॒माज्यं॒ किमा॑सीत्परि॒धिः क आ॑सीत् ।
छन्द॒: किमा॑सी॒त्प्रउ॑गं॒ किमु॒क्थं यद्दे॒वा दे॒वमय॑जन्त॒ विश्वे॑ ॥३॥
अ॒ग्नेर्गा॑य॒त्र्य॑भवत्स॒युग्वो॒ष्णिह॑या सवि॒ता सं ब॑भूव ।
अ॒नु॒ष्टुभा॒ सोम॑ उ॒क्थैर्मह॑स्वा॒न्बृह॒स्पते॑र्बृह॒ती वाच॑मावत् ॥४॥
वि॒राण्मि॒त्रावरु॑णयोरभि॒श्रीरिन्द्र॑स्य त्रि॒ष्टुबि॒ह भा॒गो अह्न॑: ।
विश्वा॑न्दे॒वाञ्जग॒त्या वि॑वेश॒ तेन॑ चाकॢप्र॒ ऋष॑यो मनु॒ष्या॑: ॥५॥
चा॒कॢ॒प्रे तेन॒ ऋष॑यो मनु॒ष्या॑ य॒ज्ञे जा॒ते पि॒तरो॑ नः पुरा॒णे ।
पश्य॑न्मन्ये॒ मन॑सा॒ चक्ष॑सा॒ तान्य इ॒मं य॒ज्ञमय॑जन्त॒ पूर्वे॑ ॥६॥
स॒हस्तो॑माः स॒हछ॑न्दस आ॒वृत॑: स॒हप्र॑मा॒ ऋष॑यः स॒प्त दैव्या॑: ।
पूर्वे॑षां॒ पन्था॑मनु॒दृश्य॒ धीरा॑ अ॒न्वाले॑भिरे र॒थ्यो॒३ न र॒श्मीन् ॥७॥