SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 059
A
A+
१० बन्धु श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुर्गौपायनाः।१-३ निर्ऋतिः,४ निर्ऋतिः सोमश्च, ५-६असुनीतिः, ७ पृथिवी-द्वयन्तरिक्ष-सोम-पूष-पथ्या-स्वस्तयः,८-१० द्यावापृथिवी, १० (पूर्वार्धस्य) इन्द्र- द्यावापृथिव्यः। त्रिष्टुप् , ८ पंक्तिः,९ महापंक्तिः, १० पंक्त्युत्तरा।
प्र ता॒र्यायु॑: प्रत॒रं नवी॑य॒: स्थाता॑रेव॒ क्रतु॑मता॒ रथ॑स्य ।
अध॒ च्यवा॑न॒ उत्त॑वी॒त्यर्थं॑ परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥१॥
साम॒न्नु रा॒ये नि॑धि॒मन्न्वन्नं॒ करा॑महे॒ सु पु॑रु॒ध श्रवां॑सि ।
ता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता म॑मत्तु परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥२॥
अ॒भी ष्व१र्यः पौंस्यै॑र्भवेम॒ द्यौर्न भूमिं॑ गि॒रयो॒ नाज्रा॑न् ।
ता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता चि॑केत परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥३॥
मो षु ण॑: सोम मृ॒त्यवे॒ परा॑ दा॒: पश्ये॑म॒ नु सूर्य॑मु॒च्चर॑न्तम् ।
द्युभि॑र्हि॒तो ज॑रि॒मा सू नो॑ अस्तु परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥४॥
असु॑नीते॒ मनो॑ अ॒स्मासु॑ धारय जी॒वात॑वे॒ सु प्र ति॑रा न॒ आयु॑: ।
रा॒र॒न्धि न॒: सूर्य॑स्य सं॒दृशि॑ घृ॒तेन॒ त्वं त॒न्वं॑ वर्धयस्व ॥५॥
असु॑नीते॒ पुन॑र॒स्मासु॒ चक्षु॒: पुन॑: प्रा॒णमि॒ह नो॑ धेहि॒ भोग॑म् ।
ज्योक्प॑श्येम॒ सूर्य॑मु॒च्चर॑न्त॒मनु॑मते मृ॒ळया॑ नः स्व॒स्ति ॥६॥
पुन॑र्नो॒ असुं॑ पृथि॒वी द॑दातु॒ पुन॒र्द्यौर्दे॒वी पुन॑र॒न्तरि॑क्षम् ।
पुन॑र्न॒: सोम॑स्त॒न्वं॑ ददातु॒ पुन॑: पू॒षा प॒थ्यां॒३ या स्व॒स्तिः ॥७॥
शं रोद॑सी सु॒बन्ध॑वे य॒ह्वी ऋ॒तस्य॑ मा॒तरा॑ ।
भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥८॥
अव॑ द्व॒के अव॑ त्रि॒का दि॒वश्च॑रन्ति भेष॒जा ।
क्ष॒मा च॑रि॒ष्ण्वे॑क॒कं भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥९॥
समि॑न्द्रेरय॒ गाम॑न॒ड्वाहं॒ य आव॑हदुशी॒नरा॑ण्या॒ अन॑: ।
भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥१०॥
प्र ता॒र्यायु॑: प्रत॒रं नवी॑य॒: स्थाता॑रेव॒ क्रतु॑मता॒ रथ॑स्य ।
अध॒ च्यवा॑न॒ उत्त॑वी॒त्यर्थं॑ परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥१॥
साम॒न्नु रा॒ये नि॑धि॒मन्न्वन्नं॒ करा॑महे॒ सु पु॑रु॒ध श्रवां॑सि ।
ता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता म॑मत्तु परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥२॥
अ॒भी ष्व१र्यः पौंस्यै॑र्भवेम॒ द्यौर्न भूमिं॑ गि॒रयो॒ नाज्रा॑न् ।
ता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता चि॑केत परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥३॥
मो षु ण॑: सोम मृ॒त्यवे॒ परा॑ दा॒: पश्ये॑म॒ नु सूर्य॑मु॒च्चर॑न्तम् ।
द्युभि॑र्हि॒तो ज॑रि॒मा सू नो॑ अस्तु परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥४॥
असु॑नीते॒ मनो॑ अ॒स्मासु॑ धारय जी॒वात॑वे॒ सु प्र ति॑रा न॒ आयु॑: ।
रा॒र॒न्धि न॒: सूर्य॑स्य सं॒दृशि॑ घृ॒तेन॒ त्वं त॒न्वं॑ वर्धयस्व ॥५॥
असु॑नीते॒ पुन॑र॒स्मासु॒ चक्षु॒: पुन॑: प्रा॒णमि॒ह नो॑ धेहि॒ भोग॑म् ।
ज्योक्प॑श्येम॒ सूर्य॑मु॒च्चर॑न्त॒मनु॑मते मृ॒ळया॑ नः स्व॒स्ति ॥६॥
पुन॑र्नो॒ असुं॑ पृथि॒वी द॑दातु॒ पुन॒र्द्यौर्दे॒वी पुन॑र॒न्तरि॑क्षम् ।
पुन॑र्न॒: सोम॑स्त॒न्वं॑ ददातु॒ पुन॑: पू॒षा प॒थ्यां॒३ या स्व॒स्तिः ॥७॥
शं रोद॑सी सु॒बन्ध॑वे य॒ह्वी ऋ॒तस्य॑ मा॒तरा॑ ।
भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥८॥
अव॑ द्व॒के अव॑ त्रि॒का दि॒वश्च॑रन्ति भेष॒जा ।
क्ष॒मा च॑रि॒ष्ण्वे॑क॒कं भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥९॥
समि॑न्द्रेरय॒ गाम॑न॒ड्वाहं॒ य आव॑हदुशी॒नरा॑ण्या॒ अन॑: ।
भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥१०॥