SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 076
A
A+
८ सर्प ऐरावतो जरत्कर्णः। ग्रावाणः। जगती।
आ व॑ ऋञ्जस ऊ॒र्जां व्यु॑ष्टि॒ष्विन्द्रं॑ म॒रुतो॒ रोद॑सी अनक्तन ।
उ॒भे यथा॑ नो॒ अह॑नी सचा॒भुवा॒ सद॑:सदो वरिव॒स्यात॑ उ॒द्भिदा॑ ॥१॥
तदु॒ श्रेष्ठं॒ सव॑नं सुनोत॒नाऽत्यो॒ न हस्त॑यतो॒ अद्रि॑: सो॒तरि॑ ।
वि॒दद्ध्य१र्यो अ॒भिभू॑ति॒ पौंस्यं॑ म॒हो रा॒ये चि॑त्तरुते॒ यदर्व॑तः ॥२॥
तदिद्ध्य॑स्य॒ सव॑नं वि॒वेर॒पो यथा॑ पु॒रा मन॑वे गा॒तुमश्रे॑त् ।
गोअ॑र्णसि त्वा॒ष्ट्रे अश्व॑निर्णिजि॒ प्रेम॑ध्व॒रेष्व॑ध्व॒राँ अ॑शिश्रयुः ॥३॥
अप॑ हत र॒क्षसो॑ भङ्गु॒राव॑त स्कभा॒यत॒ निॠ॑तिं॒ सेध॒ताम॑तिम् ।
आ नो॑ र॒यिं सर्व॑वीरं सुनोतन देवा॒व्यं॑ भरत॒ श्लोक॑मद्रयः ॥४॥
दि॒वश्चि॒दा वोऽम॑वत्तरेभ्यो वि॒भ्वना॑ चिदा॒श्व॑पस्तरेभ्यः ।
वा॒योश्चि॒दा सोम॑रभस्तरेभ्यो॒ऽग्नेश्चि॑दर्च पितु॒कृत्त॑रेभ्यः ॥५॥
भु॒रन्तु॑ नो य॒शस॒: सोत्वन्ध॑सो॒ ग्रावा॑णो वा॒चा दि॒विता॑ दि॒वित्म॑ता ।
नरो॒ यत्र॑ दुह॒ते काम्यं॒ मध्वा॑घो॒षय॑न्तो अ॒भितो॑ मिथ॒स्तुर॑: ॥६॥
सु॒न्वन्ति॒ सोमं॑ रथि॒रासो॒ अद्र॑यो॒ निर॑स्य॒ रसं॑ ग॒विषो॑ दुहन्ति॒ ते ।
दु॒हन्त्यूध॑रुप॒सेच॑नाय॒ कं नरो॑ ह॒व्या न म॑र्जयन्त आ॒सभि॑: ॥७॥
ए॒ते न॑र॒: स्वप॑सो अभूतन॒ य इन्द्रा॑य सुनु॒थ सोम॑मद्रयः ।
वा॒मंवा॑मं वो दि॒व्याय॒ धाम्ने॒ वसु॑वसु व॒: पार्थि॑वाय सुन्व॒ते ॥८॥
आ व॑ ऋञ्जस ऊ॒र्जां व्यु॑ष्टि॒ष्विन्द्रं॑ म॒रुतो॒ रोद॑सी अनक्तन ।
उ॒भे यथा॑ नो॒ अह॑नी सचा॒भुवा॒ सद॑:सदो वरिव॒स्यात॑ उ॒द्भिदा॑ ॥१॥
तदु॒ श्रेष्ठं॒ सव॑नं सुनोत॒नाऽत्यो॒ न हस्त॑यतो॒ अद्रि॑: सो॒तरि॑ ।
वि॒दद्ध्य१र्यो अ॒भिभू॑ति॒ पौंस्यं॑ म॒हो रा॒ये चि॑त्तरुते॒ यदर्व॑तः ॥२॥
तदिद्ध्य॑स्य॒ सव॑नं वि॒वेर॒पो यथा॑ पु॒रा मन॑वे गा॒तुमश्रे॑त् ।
गोअ॑र्णसि त्वा॒ष्ट्रे अश्व॑निर्णिजि॒ प्रेम॑ध्व॒रेष्व॑ध्व॒राँ अ॑शिश्रयुः ॥३॥
अप॑ हत र॒क्षसो॑ भङ्गु॒राव॑त स्कभा॒यत॒ निॠ॑तिं॒ सेध॒ताम॑तिम् ।
आ नो॑ र॒यिं सर्व॑वीरं सुनोतन देवा॒व्यं॑ भरत॒ श्लोक॑मद्रयः ॥४॥
दि॒वश्चि॒दा वोऽम॑वत्तरेभ्यो वि॒भ्वना॑ चिदा॒श्व॑पस्तरेभ्यः ।
वा॒योश्चि॒दा सोम॑रभस्तरेभ्यो॒ऽग्नेश्चि॑दर्च पितु॒कृत्त॑रेभ्यः ॥५॥
भु॒रन्तु॑ नो य॒शस॒: सोत्वन्ध॑सो॒ ग्रावा॑णो वा॒चा दि॒विता॑ दि॒वित्म॑ता ।
नरो॒ यत्र॑ दुह॒ते काम्यं॒ मध्वा॑घो॒षय॑न्तो अ॒भितो॑ मिथ॒स्तुर॑: ॥६॥
सु॒न्वन्ति॒ सोमं॑ रथि॒रासो॒ अद्र॑यो॒ निर॑स्य॒ रसं॑ ग॒विषो॑ दुहन्ति॒ ते ।
दु॒हन्त्यूध॑रुप॒सेच॑नाय॒ कं नरो॑ ह॒व्या न म॑र्जयन्त आ॒सभि॑: ॥७॥
ए॒ते न॑र॒: स्वप॑सो अभूतन॒ य इन्द्रा॑य सुनु॒थ सोम॑मद्रयः ।
वा॒मंवा॑मं वो दि॒व्याय॒ धाम्ने॒ वसु॑वसु व॒: पार्थि॑वाय सुन्व॒ते ॥८॥