SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 062
A
A+
११ नाभानेदिष्ठो मानवः। विश्वे देवाः, १-६ अंगिरसो वा, ८-११ सावर्णेदानम्। जगती, ५,८,९ अनुष्टुप् प्रगाथ: =(६ बृहती, ७ सतोबृहती ) १० गायत्री, ११ त्रिष्टुप्।
ये य॒ज्ञेन॒ दक्षि॑णया॒ सम॑क्ता॒ इन्द्र॑स्य स॒ख्यम॑मृत॒त्वमा॑न॒श ।
तेभ्यो॑ भ॒द्रम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥१॥
य उ॒दाज॑न्पि॒तरो॑ गो॒मयं॒ वस्वृ॒तेनाभि॑न्दन्परिवत्स॒रे व॒लम् ।
दी॒र्घा॒यु॒त्वम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥२॥
य ऋ॒तेन॒ सूर्य॒मारो॑हयन्दि॒व्यप्र॑थयन्पृथि॒वीं मा॒तरं॒ वि ।
सु॒प्र॒जा॒स्त्वम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥३॥
अ॒यं नाभा॑ वदति व॒ल्गु वो॑ गृ॒हे देव॑पुत्रा ऋषय॒स्तच्छृ॑णोतन ।
सु॒ब्र॒ह्म॒ण्यम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥४॥
विरू॑पास॒ इदृष॑य॒स्त इद्ग॑म्भी॒रवे॑पसः । ते अङ्गि॑रसः सू॒नव॒स्ते अ॒ग्नेः परि॑ जज्ञिरे ॥५॥
ये अ॒ग्नेः परि॑ जज्ञि॒रे विरू॑पासो दि॒वस्परि॑ । नव॑ग्वो॒ नु दश॑ग्वो॒ अङ्गि॑रस्तमो॒ सचा॑ दे॒वेषु॑ मंहते ॥६॥
इन्द्रे॑ण यु॒जा निः सृ॑जन्त वा॒घतो॑ व्र॒जं गोम॑न्तम॒श्विन॑म् । स॒हस्रं॑ मे॒ दद॑तो अष्टक॒र्ण्य१: श्रवो॑ दे॒वेष्व॑क्रत ॥७॥
प्र नू॒नं जा॑यताम॒यं मनु॒स्तोक्मे॑व रोहतु । यः स॒हस्रं॑ श॒ताश्वं॑ स॒द्यो दा॒नाय॒ मंह॑ते ॥८॥
न तम॑श्नोति॒ कश्च॒न दि॒व इ॑व॒ सान्वा॒रभ॑म् । सा॒व॒र्ण्यस्य॒ दक्षि॑णा॒ वि सिन्धु॑रिव पप्रथे ॥९॥
उ॒त दा॒सा प॑रि॒विषे॒ स्मद्दि॑ष्टी॒ गोप॑रीणसा । यदु॑स्तु॒र्वश्च॑ मामहे ॥१०॥
स॒ह॒स्र॒दा ग्रा॑म॒णीर्मा रि॑ष॒न्मनु॒: सूर्ये॑णास्य॒ यत॑मानैतु॒ दक्षि॑णा ।
साव॑र्णेर्दे॒वाः प्र ति॑र॒न्त्वायु॒र्यस्मि॒न्नश्रा॑न्ता॒ अस॑नाम॒ वाज॑म् ॥११॥
ये य॒ज्ञेन॒ दक्षि॑णया॒ सम॑क्ता॒ इन्द्र॑स्य स॒ख्यम॑मृत॒त्वमा॑न॒श ।
तेभ्यो॑ भ॒द्रम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥१॥
य उ॒दाज॑न्पि॒तरो॑ गो॒मयं॒ वस्वृ॒तेनाभि॑न्दन्परिवत्स॒रे व॒लम् ।
दी॒र्घा॒यु॒त्वम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥२॥
य ऋ॒तेन॒ सूर्य॒मारो॑हयन्दि॒व्यप्र॑थयन्पृथि॒वीं मा॒तरं॒ वि ।
सु॒प्र॒जा॒स्त्वम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥३॥
अ॒यं नाभा॑ वदति व॒ल्गु वो॑ गृ॒हे देव॑पुत्रा ऋषय॒स्तच्छृ॑णोतन ।
सु॒ब्र॒ह्म॒ण्यम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥४॥
विरू॑पास॒ इदृष॑य॒स्त इद्ग॑म्भी॒रवे॑पसः । ते अङ्गि॑रसः सू॒नव॒स्ते अ॒ग्नेः परि॑ जज्ञिरे ॥५॥
ये अ॒ग्नेः परि॑ जज्ञि॒रे विरू॑पासो दि॒वस्परि॑ । नव॑ग्वो॒ नु दश॑ग्वो॒ अङ्गि॑रस्तमो॒ सचा॑ दे॒वेषु॑ मंहते ॥६॥
इन्द्रे॑ण यु॒जा निः सृ॑जन्त वा॒घतो॑ व्र॒जं गोम॑न्तम॒श्विन॑म् । स॒हस्रं॑ मे॒ दद॑तो अष्टक॒र्ण्य१: श्रवो॑ दे॒वेष्व॑क्रत ॥७॥
प्र नू॒नं जा॑यताम॒यं मनु॒स्तोक्मे॑व रोहतु । यः स॒हस्रं॑ श॒ताश्वं॑ स॒द्यो दा॒नाय॒ मंह॑ते ॥८॥
न तम॑श्नोति॒ कश्च॒न दि॒व इ॑व॒ सान्वा॒रभ॑म् । सा॒व॒र्ण्यस्य॒ दक्षि॑णा॒ वि सिन्धु॑रिव पप्रथे ॥९॥
उ॒त दा॒सा प॑रि॒विषे॒ स्मद्दि॑ष्टी॒ गोप॑रीणसा । यदु॑स्तु॒र्वश्च॑ मामहे ॥१०॥
स॒ह॒स्र॒दा ग्रा॑म॒णीर्मा रि॑ष॒न्मनु॒: सूर्ये॑णास्य॒ यत॑मानैतु॒ दक्षि॑णा ।
साव॑र्णेर्दे॒वाः प्र ति॑र॒न्त्वायु॒र्यस्मि॒न्नश्रा॑न्ता॒ अस॑नाम॒ वाज॑म् ॥११॥