SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 161
A
A+
५ प्राजापत्यो यक्ष्मनाशनः।इन्द्राग्नी, राजयक्ष्मघ्नं वा। त्रिष्टुप् , ५ अनुष्टुप्।
मु॒ञ्चामि॑ त्वा ह॒विषा॒ जीव॑नाय॒ कम॑ज्ञातय॒क्ष्मादु॒त रा॑जय॒क्ष्मात् ।
ग्राहि॑र्ज॒ग्राह॒ यदि॑ वै॒तदे॑नं॒ तस्या॑ इन्द्राग्नी॒ प्र मु॑मुक्तमेनम् ॥१॥
यदि॑ क्षि॒तायु॒र्यदि॑ वा॒ परे॑तो॒ यदि॑ मृ॒त्योर॑न्ति॒कं नी॑त ए॒व ।
तमा ह॑रामि॒ निॠ॑तेरु॒पस्था॒दस्पा॑र्षमेनं श॒तशा॑रदाय ॥२॥
स॒ह॒स्रा॒क्षेण॑ श॒तशा॑रदेन श॒तायु॑षा ह॒विषाहा॑र्षमेनम् ।
श॒तं यथे॒मं श॒रदो॒ नया॒तीन्द्रो॒ विश्व॑स्य दुरि॒तस्य॑ पा॒रम् ॥३॥
श॒तं जी॑व श॒रदो॒ वर्ध॑मानः श॒तं हे॑म॒न्ताञ्छ॒तमु॑ वस॒न्तान् ।
श॒तमि॑न्द्रा॒ग्नी स॑वि॒ता बृह॒स्पति॑: श॒तायु॑षा ह॒विषे॒मं पुन॑र्दुः ॥४॥
आहा॑र्षं॒ त्वावि॑दं त्वा॒ पुन॒रागा॑: पुनर्नव । सर्वा॑ङ्ग॒ सर्वं॑ ते॒ चक्षु॒: सर्व॒मायु॑श्च तेऽविदम् ॥५॥
मु॒ञ्चामि॑ त्वा ह॒विषा॒ जीव॑नाय॒ कम॑ज्ञातय॒क्ष्मादु॒त रा॑जय॒क्ष्मात् ।
ग्राहि॑र्ज॒ग्राह॒ यदि॑ वै॒तदे॑नं॒ तस्या॑ इन्द्राग्नी॒ प्र मु॑मुक्तमेनम् ॥१॥
यदि॑ क्षि॒तायु॒र्यदि॑ वा॒ परे॑तो॒ यदि॑ मृ॒त्योर॑न्ति॒कं नी॑त ए॒व ।
तमा ह॑रामि॒ निॠ॑तेरु॒पस्था॒दस्पा॑र्षमेनं श॒तशा॑रदाय ॥२॥
स॒ह॒स्रा॒क्षेण॑ श॒तशा॑रदेन श॒तायु॑षा ह॒विषाहा॑र्षमेनम् ।
श॒तं यथे॒मं श॒रदो॒ नया॒तीन्द्रो॒ विश्व॑स्य दुरि॒तस्य॑ पा॒रम् ॥३॥
श॒तं जी॑व श॒रदो॒ वर्ध॑मानः श॒तं हे॑म॒न्ताञ्छ॒तमु॑ वस॒न्तान् ।
श॒तमि॑न्द्रा॒ग्नी स॑वि॒ता बृह॒स्पति॑: श॒तायु॑षा ह॒विषे॒मं पुन॑र्दुः ॥४॥
आहा॑र्षं॒ त्वावि॑दं त्वा॒ पुन॒रागा॑: पुनर्नव । सर्वा॑ङ्ग॒ सर्वं॑ ते॒ चक्षु॒: सर्व॒मायु॑श्च तेऽविदम् ॥५॥