SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 020
A
A+
१० ऐन्द्रो विमदः प्राजापत्यो वा, वासुक्रो वसुकृद्वा। अग्निः। गायत्री, १ एकपदा विराट् (एष मन्त्र: शान्त्यर्थः) २अनुष्टुप्,९ विराट् १० त्रिष्टुप्।
भ॒द्रं नो॒ अपि॑ वातय॒ मन॑: ॥१॥
अ॒ग्निमी॑ळे भु॒जां यवि॑ष्ठं शा॒सा मि॒त्रं दु॒र्धरी॑तुम् । यस्य॒ धर्म॒न्त्स्व१रेनी॑: सप॒र्यन्ति॑ मा॒तुरूध॑: ॥२॥
यमा॒सा कृ॒पनी॑ळं भा॒साके॑तुं व॒र्धय॑न्ति । भ्राज॑ते॒ श्रेणि॑दन् ॥३॥
अ॒र्यो वि॒शां गा॒तुरे॑ति॒ प्र यदान॑ड्दि॒वो अन्ता॑न् । क॒विर॒भ्रं दीद्या॑नः ॥४॥
जु॒षद्ध॒व्या मानु॑षस्यो॒र्ध्वस्त॑स्था॒वृभ्वा॑ य॒ज्ञे । मि॒न्वन्त्सद्म॑ पु॒र ए॑ति ॥५॥
स हि क्षेमो॑ ह॒विर्य॒ज्ञः श्रु॒ष्टीद॑स्य गा॒तुरे॑ति । अ॒ग्निं दे॒वा वाशी॑मन्तम् ॥६॥
य॒ज्ञा॒साहं॒ दुव॑ इषे॒ऽग्निं पूर्व॑स्य॒ शेव॑स्य । अद्रे॑: सू॒नुमा॒युमा॑हुः ॥७॥
नरो॒ ये के चा॒स्मदा विश्वेत्ते वा॒म आ स्यु॑: । अ॒ग्निं ह॒विषा॒ वर्ध॑न्तः ॥८॥
कृ॒ष्णः श्वे॒तो॑ऽरु॒षो यामो॑ अस्य ब्र॒ध्न ऋ॒ज्र उ॒त शोणो॒ यश॑स्वान् । हिर॑ण्यरूपं॒ जनि॑ता जजान ॥९॥
ए॒वा ते॑ अग्ने विम॒दो म॑नी॒षामूर्जो॑ नपाद॒मृते॑भिः स॒जोषा॑: ।
गिर॒ आ व॑क्षत्सुम॒तीरि॑या॒न इष॒मूर्जं॑ सुक्षि॒तिं विश्व॒माभा॑: ॥१०॥
भ॒द्रं नो॒ अपि॑ वातय॒ मन॑: ॥१॥
अ॒ग्निमी॑ळे भु॒जां यवि॑ष्ठं शा॒सा मि॒त्रं दु॒र्धरी॑तुम् । यस्य॒ धर्म॒न्त्स्व१रेनी॑: सप॒र्यन्ति॑ मा॒तुरूध॑: ॥२॥
यमा॒सा कृ॒पनी॑ळं भा॒साके॑तुं व॒र्धय॑न्ति । भ्राज॑ते॒ श्रेणि॑दन् ॥३॥
अ॒र्यो वि॒शां गा॒तुरे॑ति॒ प्र यदान॑ड्दि॒वो अन्ता॑न् । क॒विर॒भ्रं दीद्या॑नः ॥४॥
जु॒षद्ध॒व्या मानु॑षस्यो॒र्ध्वस्त॑स्था॒वृभ्वा॑ य॒ज्ञे । मि॒न्वन्त्सद्म॑ पु॒र ए॑ति ॥५॥
स हि क्षेमो॑ ह॒विर्य॒ज्ञः श्रु॒ष्टीद॑स्य गा॒तुरे॑ति । अ॒ग्निं दे॒वा वाशी॑मन्तम् ॥६॥
य॒ज्ञा॒साहं॒ दुव॑ इषे॒ऽग्निं पूर्व॑स्य॒ शेव॑स्य । अद्रे॑: सू॒नुमा॒युमा॑हुः ॥७॥
नरो॒ ये के चा॒स्मदा विश्वेत्ते वा॒म आ स्यु॑: । अ॒ग्निं ह॒विषा॒ वर्ध॑न्तः ॥८॥
कृ॒ष्णः श्वे॒तो॑ऽरु॒षो यामो॑ अस्य ब्र॒ध्न ऋ॒ज्र उ॒त शोणो॒ यश॑स्वान् । हिर॑ण्यरूपं॒ जनि॑ता जजान ॥९॥
ए॒वा ते॑ अग्ने विम॒दो म॑नी॒षामूर्जो॑ नपाद॒मृते॑भिः स॒जोषा॑: ।
गिर॒ आ व॑क्षत्सुम॒तीरि॑या॒न इष॒मूर्जं॑ सुक्षि॒तिं विश्व॒माभा॑: ॥१०॥