SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 131
A
A+
७ सुकीर्तिः काक्षीवत्। इन्द्रः,४-५ अश्विनौ। त्रिष्टुप् , ४ अनुष्टुप्।
अप॒ प्राच॑ इन्द्र॒ विश्वाँ॑ अ॒मित्रा॒नपापा॑चो अभिभूते नुदस्व ।
अपोदी॑चो॒ अप॑ शूराध॒राच॑ उ॒रौ यथा॒ तव॒ शर्म॒न्मदे॑म ॥१॥
कु॒विद॒ङ्ग यव॑मन्तो॒ यवं॑ चि॒द्यथा॒ दान्त्य॑नुपू॒र्वं वि॒यूय॑ ।
इ॒हेहै॑षां कृणुहि॒ भोज॑नानि॒ ये ब॒र्हिषो॒ नमो॑वृक्तिं॒ न ज॒ग्मुः ॥२॥
न॒हि स्थूर्यृ॑तु॒था या॒तमस्ति॒ नोत श्रवो॑ विविदे संग॒मेषु॑ ।
ग॒व्यन्त॒ इन्द्रं॑ स॒ख्याय॒ विप्रा॑ अश्वा॒यन्तो॒ वृष॑णं वा॒जय॑न्तः ॥३॥
यु॒वं सु॒राम॑मश्विना॒ नमु॑चावासु॒रे सचा॑ । वि॒पि॒पा॒ना शु॑भस्पती॒ इन्द्रं॒ कर्म॑स्वावतम् ॥४॥
पु॒त्रमि॑व पि॒तरा॑व॒श्विनो॒भेन्द्रा॒वथु॒: काव्यै॑र्दं॒सना॑भिः ।
यत्सु॒रामं॒ व्यपि॑ब॒: शची॑भि॒: सर॑स्वती त्वा मघवन्नभिष्णक् ॥५॥
इन्द्र॑: सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ अवो॑भिः सुमृळी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः ।
बाध॑तां॒ द्वेषो॒ अभ॑यं कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥६॥
तस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्याऽपि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ।
स सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ इन्द्रो॑ अ॒स्मे आ॒राच्चि॒द्द्वेष॑: सनु॒तर्यु॑योतु ॥७॥
अप॒ प्राच॑ इन्द्र॒ विश्वाँ॑ अ॒मित्रा॒नपापा॑चो अभिभूते नुदस्व ।
अपोदी॑चो॒ अप॑ शूराध॒राच॑ उ॒रौ यथा॒ तव॒ शर्म॒न्मदे॑म ॥१॥
कु॒विद॒ङ्ग यव॑मन्तो॒ यवं॑ चि॒द्यथा॒ दान्त्य॑नुपू॒र्वं वि॒यूय॑ ।
इ॒हेहै॑षां कृणुहि॒ भोज॑नानि॒ ये ब॒र्हिषो॒ नमो॑वृक्तिं॒ न ज॒ग्मुः ॥२॥
न॒हि स्थूर्यृ॑तु॒था या॒तमस्ति॒ नोत श्रवो॑ विविदे संग॒मेषु॑ ।
ग॒व्यन्त॒ इन्द्रं॑ स॒ख्याय॒ विप्रा॑ अश्वा॒यन्तो॒ वृष॑णं वा॒जय॑न्तः ॥३॥
यु॒वं सु॒राम॑मश्विना॒ नमु॑चावासु॒रे सचा॑ । वि॒पि॒पा॒ना शु॑भस्पती॒ इन्द्रं॒ कर्म॑स्वावतम् ॥४॥
पु॒त्रमि॑व पि॒तरा॑व॒श्विनो॒भेन्द्रा॒वथु॒: काव्यै॑र्दं॒सना॑भिः ।
यत्सु॒रामं॒ व्यपि॑ब॒: शची॑भि॒: सर॑स्वती त्वा मघवन्नभिष्णक् ॥५॥
इन्द्र॑: सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ अवो॑भिः सुमृळी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः ।
बाध॑तां॒ द्वेषो॒ अभ॑यं कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥६॥
तस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्याऽपि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ।
स सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ इन्द्रो॑ अ॒स्मे आ॒राच्चि॒द्द्वेष॑: सनु॒तर्यु॑योतु ॥७॥