SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 107
A
A+
११ दिव्य आंगिरसः, दक्षिणा वा प्राजापत्या। दक्षिना, दक्षिणादातारो वा। त्रिष्टुप् , ४ जगती।
आ॒विर॑भू॒न्महि॒ माघो॑नमेषां॒ विश्वं॑ जी॒वं तम॑सो॒ निर॑मोचि ।
महि॒ ज्योति॑: पि॒तृभि॑र्द॒त्तमागा॑दु॒रुः पन्था॒ दक्षि॑णाया अदर्शि ॥१॥
उ॒च्चा दि॒वि दक्षि॑णावन्तो अस्थु॒र्ये अ॑श्व॒दाः स॒ह ते सूर्ये॑ण ।
हि॒र॒ण्य॒दा अ॑मृत॒त्वं भ॑जन्ते वासो॒दाः सो॑म॒ प्र ति॑रन्त॒ आयु॑: ॥२॥
दैवी॑ पू॒र्तिर्दक्षि॑णा देवय॒ज्या न क॑वा॒रिभ्यो॑ न॒हि ते पृ॒णन्ति॑ ।
अथा॒ नर॒: प्रय॑तदक्षिणासोऽवद्यभि॒या ब॒हव॑: पृणन्ति ॥३॥
श॒तधा॑रं वा॒युम॒र्कं स्व॒र्विदं॑ नृ॒चक्ष॑स॒स्ते अ॒भि च॑क्षते ह॒विः ।
ये पृ॒णन्ति॒ प्र च॒ यच्छ॑न्ति संग॒मे ते दक्षि॑णां दुहते स॒प्तमा॑तरम् ॥४॥
दक्षि॑णावान्प्रथ॒मो हू॒त ए॑ति॒ दक्षि॑णावान्ग्राम॒णीरग्र॑मेति ।
तमे॒व म॑न्ये नृ॒पतिं॒ जना॑नां॒ यः प्र॑थ॒मो दक्षि॑णामावि॒वाय॑ ॥५॥
तमे॒व ऋषिं॒ तमु॑ ब्र॒ह्माण॑माहुर्यज्ञ॒न्यं॑ साम॒गामु॑क्थ॒शास॑म् ।
स शु॒क्रस्य॑ त॒न्वो॑ वेद ति॒स्रो यः प्र॑थ॒मो दक्षि॑णया र॒राध॑ ॥६॥
दक्षि॒णाश्वं॒ दक्षि॑णा॒ गां द॑दाति॒ दक्षि॑णा च॒न्द्रमु॒त यद्धिर॑ण्यम् ।
दक्षि॒णान्नं॑ वनुते॒ यो न॑ आ॒त्मा दक्षि॑णां॒ वर्म॑ कृणुते विजा॒नन् ॥७॥
न भो॒जा म॑म्रु॒र्न न्य॒र्थमी॑यु॒र्न रि॑ष्यन्ति॒ न व्य॑थन्ते ह भो॒जाः ।
इ॒दं यद्विश्वं॒ भुव॑नं॒ स्व॑श्चै॒तत्सर्वं॒ दक्षि॑णैभ्यो ददाति ॥८॥
भो॒जा जि॑ग्युः सुर॒भिं योनि॒मग्रे॑ भो॒जा जि॑ग्युर्व॒ध्वं१ या सु॒वासा॑: ।
भो॒जा जि॑ग्युरन्त॒:पेयं॒ सुरा॑या भो॒जा जि॑ग्यु॒र्ये अहू॑ताः प्र॒यन्ति॑ ॥९॥
भो॒जायाश्वं॒ सं मृ॑जन्त्या॒शुं भो॒जाया॑स्ते क॒न्या॒३ शुम्भ॑माना ।
भो॒जस्ये॒दं पु॑ष्क॒रिणी॑व॒ वेश्म॒ परि॑ष्कृतं देवमा॒नेव॑ चि॒त्रम् ॥१०॥
भो॒जमश्वा॑: सुष्ठु॒वाहो॑ वहन्ति सु॒वृद्रथो॑ वर्तते॒ दक्षि॑णायाः ।
भो॒जं दे॑वासोऽवता॒ भरे॑षु भो॒जः शत्रू॑न्त्समनी॒केषु॒ जेता॑ ॥११॥
आ॒विर॑भू॒न्महि॒ माघो॑नमेषां॒ विश्वं॑ जी॒वं तम॑सो॒ निर॑मोचि ।
महि॒ ज्योति॑: पि॒तृभि॑र्द॒त्तमागा॑दु॒रुः पन्था॒ दक्षि॑णाया अदर्शि ॥१॥
उ॒च्चा दि॒वि दक्षि॑णावन्तो अस्थु॒र्ये अ॑श्व॒दाः स॒ह ते सूर्ये॑ण ।
हि॒र॒ण्य॒दा अ॑मृत॒त्वं भ॑जन्ते वासो॒दाः सो॑म॒ प्र ति॑रन्त॒ आयु॑: ॥२॥
दैवी॑ पू॒र्तिर्दक्षि॑णा देवय॒ज्या न क॑वा॒रिभ्यो॑ न॒हि ते पृ॒णन्ति॑ ।
अथा॒ नर॒: प्रय॑तदक्षिणासोऽवद्यभि॒या ब॒हव॑: पृणन्ति ॥३॥
श॒तधा॑रं वा॒युम॒र्कं स्व॒र्विदं॑ नृ॒चक्ष॑स॒स्ते अ॒भि च॑क्षते ह॒विः ।
ये पृ॒णन्ति॒ प्र च॒ यच्छ॑न्ति संग॒मे ते दक्षि॑णां दुहते स॒प्तमा॑तरम् ॥४॥
दक्षि॑णावान्प्रथ॒मो हू॒त ए॑ति॒ दक्षि॑णावान्ग्राम॒णीरग्र॑मेति ।
तमे॒व म॑न्ये नृ॒पतिं॒ जना॑नां॒ यः प्र॑थ॒मो दक्षि॑णामावि॒वाय॑ ॥५॥
तमे॒व ऋषिं॒ तमु॑ ब्र॒ह्माण॑माहुर्यज्ञ॒न्यं॑ साम॒गामु॑क्थ॒शास॑म् ।
स शु॒क्रस्य॑ त॒न्वो॑ वेद ति॒स्रो यः प्र॑थ॒मो दक्षि॑णया र॒राध॑ ॥६॥
दक्षि॒णाश्वं॒ दक्षि॑णा॒ गां द॑दाति॒ दक्षि॑णा च॒न्द्रमु॒त यद्धिर॑ण्यम् ।
दक्षि॒णान्नं॑ वनुते॒ यो न॑ आ॒त्मा दक्षि॑णां॒ वर्म॑ कृणुते विजा॒नन् ॥७॥
न भो॒जा म॑म्रु॒र्न न्य॒र्थमी॑यु॒र्न रि॑ष्यन्ति॒ न व्य॑थन्ते ह भो॒जाः ।
इ॒दं यद्विश्वं॒ भुव॑नं॒ स्व॑श्चै॒तत्सर्वं॒ दक्षि॑णैभ्यो ददाति ॥८॥
भो॒जा जि॑ग्युः सुर॒भिं योनि॒मग्रे॑ भो॒जा जि॑ग्युर्व॒ध्वं१ या सु॒वासा॑: ।
भो॒जा जि॑ग्युरन्त॒:पेयं॒ सुरा॑या भो॒जा जि॑ग्यु॒र्ये अहू॑ताः प्र॒यन्ति॑ ॥९॥
भो॒जायाश्वं॒ सं मृ॑जन्त्या॒शुं भो॒जाया॑स्ते क॒न्या॒३ शुम्भ॑माना ।
भो॒जस्ये॒दं पु॑ष्क॒रिणी॑व॒ वेश्म॒ परि॑ष्कृतं देवमा॒नेव॑ चि॒त्रम् ॥१०॥
भो॒जमश्वा॑: सुष्ठु॒वाहो॑ वहन्ति सु॒वृद्रथो॑ वर्तते॒ दक्षि॑णायाः ।
भो॒जं दे॑वासोऽवता॒ भरे॑षु भो॒जः शत्रू॑न्त्समनी॒केषु॒ जेता॑ ॥११॥