SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 032
A
A+
९ कवष ऐलूषः। इन्द्रः। जगती, ६-९ त्रिष्टुप् ।
प्र सु ग्मन्ता॑ धियसा॒नस्य॑ स॒क्षणि॑ व॒रेभि॑र्व॒राँ अ॒भि षु प्र॒सीद॑तः ।
अ॒स्माक॒मिन्द्र॑ उ॒भयं॑ जुजोषति॒ यत्सो॒म्यस्यान्ध॑सो॒ बुबो॑धति ॥१॥
वी॑न्द्र यासि दि॒व्यानि॑ रोच॒ना वि पार्थि॑वानि॒ रज॑सा पुरुष्टुत ।
ये त्वा॒ वह॑न्ति॒ मुहु॑रध्व॒राँ उप॒ ते सु व॑न्वन्तु वग्व॒नाँ अ॑रा॒धस॑: ॥२॥
तदिन्मे॑ छन्त्स॒द्वपु॑षो॒ वपु॑ष्टरं पु॒त्रो यज्जानं॑ पि॒त्रोर॒धीय॑ति ।
जा॒या पतिं॑ वहति व॒ग्नुना॑ सु॒मत्पुं॒स इद्भ॒द्रो व॑ह॒तुः परि॑ष्कृतः ॥३॥
तदित्स॒धस्थ॑म॒भि चारु॑ दीधय॒ गावो॒ यच्छास॑न्वह॒तुं न धे॒नव॑: ।
मा॒ता यन्मन्तु॑र्यू॒थस्य॑ पू॒र्व्याऽभि वा॒णस्य॑ स॒प्तधा॑तु॒रिज्जन॑: ॥४॥
प्र वोऽच्छा॑ रिरिचे देव॒युष्प॒दमेको॑ रु॒द्रेभि॑र्याति तु॒र्वणि॑: ।
ज॒रा वा॒ येष्व॒मृते॑षु दा॒वने॒ परि॑ व॒ ऊमे॑भ्यः सिञ्चता॒ मधु॑ ॥५॥
नि॒धी॒यमा॑न॒मप॑गूळ्हम॒प्सु प्र मे॑ दे॒वानां॑ व्रत॒पा उ॑वाच ।
इन्द्रो॑ वि॒द्वाँ अनु॒ हि त्वा॑ च॒चक्ष॒ तेना॒हम॑ग्ने॒ अनु॑शिष्ट॒ आगा॑म् ॥६॥
अक्षे॑त्रवित्क्षेत्र॒विदं॒ ह्यप्रा॒ट् स प्रैति॑ क्षेत्र॒विदानु॑शिष्टः ।
ए॒तद्वै भ॒द्रम॑नु॒शास॑नस्यो॒त स्रु॒तिं वि॑न्दत्यञ्ज॒सीना॑म् ॥७॥
अ॒द्येदु॒ प्राणी॒दम॑मन्नि॒माहाऽपी॑वृतो अधयन्मा॒तुरूध॑: ।
एमे॑नमाप जरि॒मा युवा॑न॒महे॑ळ॒न्वसु॑: सु॒मना॑ बभूव ॥८॥
ए॒तानि॑ भ॒द्रा क॑लश क्रियाम॒ कुरु॑श्रवण॒ दद॑तो म॒घानि॑ ।
दा॒न इद्वो॑ मघवान॒: सो अ॑स्त्व॒यं च॒ सोमो॑ हृ॒दि यं बिभ॑र्मि ॥९॥
प्र सु ग्मन्ता॑ धियसा॒नस्य॑ स॒क्षणि॑ व॒रेभि॑र्व॒राँ अ॒भि षु प्र॒सीद॑तः ।
अ॒स्माक॒मिन्द्र॑ उ॒भयं॑ जुजोषति॒ यत्सो॒म्यस्यान्ध॑सो॒ बुबो॑धति ॥१॥
वी॑न्द्र यासि दि॒व्यानि॑ रोच॒ना वि पार्थि॑वानि॒ रज॑सा पुरुष्टुत ।
ये त्वा॒ वह॑न्ति॒ मुहु॑रध्व॒राँ उप॒ ते सु व॑न्वन्तु वग्व॒नाँ अ॑रा॒धस॑: ॥२॥
तदिन्मे॑ छन्त्स॒द्वपु॑षो॒ वपु॑ष्टरं पु॒त्रो यज्जानं॑ पि॒त्रोर॒धीय॑ति ।
जा॒या पतिं॑ वहति व॒ग्नुना॑ सु॒मत्पुं॒स इद्भ॒द्रो व॑ह॒तुः परि॑ष्कृतः ॥३॥
तदित्स॒धस्थ॑म॒भि चारु॑ दीधय॒ गावो॒ यच्छास॑न्वह॒तुं न धे॒नव॑: ।
मा॒ता यन्मन्तु॑र्यू॒थस्य॑ पू॒र्व्याऽभि वा॒णस्य॑ स॒प्तधा॑तु॒रिज्जन॑: ॥४॥
प्र वोऽच्छा॑ रिरिचे देव॒युष्प॒दमेको॑ रु॒द्रेभि॑र्याति तु॒र्वणि॑: ।
ज॒रा वा॒ येष्व॒मृते॑षु दा॒वने॒ परि॑ व॒ ऊमे॑भ्यः सिञ्चता॒ मधु॑ ॥५॥
नि॒धी॒यमा॑न॒मप॑गूळ्हम॒प्सु प्र मे॑ दे॒वानां॑ व्रत॒पा उ॑वाच ।
इन्द्रो॑ वि॒द्वाँ अनु॒ हि त्वा॑ च॒चक्ष॒ तेना॒हम॑ग्ने॒ अनु॑शिष्ट॒ आगा॑म् ॥६॥
अक्षे॑त्रवित्क्षेत्र॒विदं॒ ह्यप्रा॒ट् स प्रैति॑ क्षेत्र॒विदानु॑शिष्टः ।
ए॒तद्वै भ॒द्रम॑नु॒शास॑नस्यो॒त स्रु॒तिं वि॑न्दत्यञ्ज॒सीना॑म् ॥७॥
अ॒द्येदु॒ प्राणी॒दम॑मन्नि॒माहाऽपी॑वृतो अधयन्मा॒तुरूध॑: ।
एमे॑नमाप जरि॒मा युवा॑न॒महे॑ळ॒न्वसु॑: सु॒मना॑ बभूव ॥८॥
ए॒तानि॑ भ॒द्रा क॑लश क्रियाम॒ कुरु॑श्रवण॒ दद॑तो म॒घानि॑ ।
दा॒न इद्वो॑ मघवान॒: सो अ॑स्त्व॒यं च॒ सोमो॑ हृ॒दि यं बिभ॑र्मि ॥९॥