SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 022
A
A+
१५ ऐन्द्रो विमदः प्राजापत्यो वा, वासुक्रो वसुकृद्वा। इन्द्रः। पुरस्ताद्बृहती ५,७,९ अनुष्टुप्, १५ त्रिष्टुप् ।
कुह॑ श्रु॒त इन्द्र॒: कस्मि॑न्न॒द्य जने॑ मि॒त्रो न श्रू॑यते । ऋषी॑णां वा॒ यः क्षये॒ गुहा॑ वा॒ चर्कृ॑षे गि॒रा ॥१॥
इ॒ह श्रु॒त इन्द्रो॑ अ॒स्मे अ॒द्य स्तवे॑ व॒ज्र्यृची॑षमः । मि॒त्रो न यो जने॒ष्वा यश॑श्च॒क्रे असा॒म्या ॥२॥
म॒हो यस्पति॒: शव॑सो॒ असा॒म्या म॒हो नृ॒म्णस्य॑ तूतु॒जिः । भ॒र्ता वज्र॑स्य धृ॒ष्णोः पि॒ता पु॒त्रमि॑व प्रि॒यम् ॥३॥
यु॒जा॒नो अश्वा॒ वात॑स्य॒ धुनी॑ दे॒वो दे॒वस्य॑ वज्रिवः । स्यन्ता॑ प॒था वि॒रुक्म॑ता सृजा॒नः स्तो॒ष्यध्व॑नः ॥४॥
त्वं त्या चि॒द्वात॒स्याश्वागा॑ ऋ॒ज्रा त्मना॒ वह॑ध्यै । ययो॑र्दे॒वो न मर्त्यो॑ य॒न्ता नकि॑र्वि॒दाय्य॑: ॥५॥
अध॒ ग्मन्तो॒शना॑ पृच्छते वां॒ कद॑र्था न॒ आ गृ॒हम् । आ ज॑ग्मथुः परा॒काद्दि॒वश्च॒ ग्मश्च॒ मर्त्य॑म् ॥६॥
आ न॑ इन्द्र पृक्षसे॒ऽस्माकं॒ ब्रह्मोद्य॑तम् । तत्त्वा॑ याचाम॒हेऽव॒: शुष्णं॒ यद्धन्नमा॑नुषम् ॥७॥
अ॒क॒र्मा दस्यु॑र॒भि नो॑ अम॒न्तुर॒न्यव्र॑तो॒ अमा॑नुषः । त्वं तस्या॑मित्रह॒न्वध॑र्दा॒सस्य॑ दम्भय ॥८॥
त्वं न॑ इन्द्र शूर॒ शूरै॑रु॒त त्वोता॑सो ब॒र्हणा॑ । पु॒रु॒त्रा ते॒ वि पू॒र्तयो॒ नव॑न्त क्षो॒णयो॑ यथा ॥९॥
त्वं तान्वृ॑त्र॒हत्ये॑ चोदयो॒ नॄन्का॑र्पा॒णे शू॑र वज्रिवः । गुहा॒ यदी॑ कवी॒नां वि॒शां नक्ष॑त्रशवसाम् ॥१०॥
म॒क्षू ता त॑ इन्द्र दा॒नाप्न॑स आक्षा॒णे शू॑र वज्रिवः । यद्ध॒ शुष्ण॑स्य द॒म्भयो॑ जा॒तं विश्वं॑ स॒याव॑भिः ॥११॥
माकु॒ध्र्य॑गिन्द्र शूर॒ वस्वी॑र॒स्मे भू॑वन्न॒भिष्ट॑यः । व॒यंव॑यं त आसां सु॒म्ने स्या॑म वज्रिवः ॥१२॥
अ॒स्मे ता त॑ इन्द्र सन्तु स॒त्याऽहिं॑सन्तीरुप॒स्पृश॑: । वि॒द्याम॒ यासां॒ भुजो॑ धेनू॒नां न व॑ज्रिवः ॥१३॥
अ॒ह॒स्ता यद॒पदी॒ वर्ध॑त॒ क्षाः शची॑भिर्वे॒द्याना॑म् । शुष्णं॒ परि॑ प्रदक्षि॒णिद्वि॒श्वाय॑वे॒ नि शि॑श्नथः ॥१४॥
पिबा॑पि॒बेदि॑न्द्र शूर॒ सोमं॒ मा रि॑षण्यो वसवान॒ वसु॒: सन् ।
उ॒त त्रा॑यस्व गृण॒तो म॒घोनो॑ म॒हश्च॑ रा॒यो रे॒वत॑स्कृधी नः ॥१५॥
कुह॑ श्रु॒त इन्द्र॒: कस्मि॑न्न॒द्य जने॑ मि॒त्रो न श्रू॑यते । ऋषी॑णां वा॒ यः क्षये॒ गुहा॑ वा॒ चर्कृ॑षे गि॒रा ॥१॥
इ॒ह श्रु॒त इन्द्रो॑ अ॒स्मे अ॒द्य स्तवे॑ व॒ज्र्यृची॑षमः । मि॒त्रो न यो जने॒ष्वा यश॑श्च॒क्रे असा॒म्या ॥२॥
म॒हो यस्पति॒: शव॑सो॒ असा॒म्या म॒हो नृ॒म्णस्य॑ तूतु॒जिः । भ॒र्ता वज्र॑स्य धृ॒ष्णोः पि॒ता पु॒त्रमि॑व प्रि॒यम् ॥३॥
यु॒जा॒नो अश्वा॒ वात॑स्य॒ धुनी॑ दे॒वो दे॒वस्य॑ वज्रिवः । स्यन्ता॑ प॒था वि॒रुक्म॑ता सृजा॒नः स्तो॒ष्यध्व॑नः ॥४॥
त्वं त्या चि॒द्वात॒स्याश्वागा॑ ऋ॒ज्रा त्मना॒ वह॑ध्यै । ययो॑र्दे॒वो न मर्त्यो॑ य॒न्ता नकि॑र्वि॒दाय्य॑: ॥५॥
अध॒ ग्मन्तो॒शना॑ पृच्छते वां॒ कद॑र्था न॒ आ गृ॒हम् । आ ज॑ग्मथुः परा॒काद्दि॒वश्च॒ ग्मश्च॒ मर्त्य॑म् ॥६॥
आ न॑ इन्द्र पृक्षसे॒ऽस्माकं॒ ब्रह्मोद्य॑तम् । तत्त्वा॑ याचाम॒हेऽव॒: शुष्णं॒ यद्धन्नमा॑नुषम् ॥७॥
अ॒क॒र्मा दस्यु॑र॒भि नो॑ अम॒न्तुर॒न्यव्र॑तो॒ अमा॑नुषः । त्वं तस्या॑मित्रह॒न्वध॑र्दा॒सस्य॑ दम्भय ॥८॥
त्वं न॑ इन्द्र शूर॒ शूरै॑रु॒त त्वोता॑सो ब॒र्हणा॑ । पु॒रु॒त्रा ते॒ वि पू॒र्तयो॒ नव॑न्त क्षो॒णयो॑ यथा ॥९॥
त्वं तान्वृ॑त्र॒हत्ये॑ चोदयो॒ नॄन्का॑र्पा॒णे शू॑र वज्रिवः । गुहा॒ यदी॑ कवी॒नां वि॒शां नक्ष॑त्रशवसाम् ॥१०॥
म॒क्षू ता त॑ इन्द्र दा॒नाप्न॑स आक्षा॒णे शू॑र वज्रिवः । यद्ध॒ शुष्ण॑स्य द॒म्भयो॑ जा॒तं विश्वं॑ स॒याव॑भिः ॥११॥
माकु॒ध्र्य॑गिन्द्र शूर॒ वस्वी॑र॒स्मे भू॑वन्न॒भिष्ट॑यः । व॒यंव॑यं त आसां सु॒म्ने स्या॑म वज्रिवः ॥१२॥
अ॒स्मे ता त॑ इन्द्र सन्तु स॒त्याऽहिं॑सन्तीरुप॒स्पृश॑: । वि॒द्याम॒ यासां॒ भुजो॑ धेनू॒नां न व॑ज्रिवः ॥१३॥
अ॒ह॒स्ता यद॒पदी॒ वर्ध॑त॒ क्षाः शची॑भिर्वे॒द्याना॑म् । शुष्णं॒ परि॑ प्रदक्षि॒णिद्वि॒श्वाय॑वे॒ नि शि॑श्नथः ॥१४॥
पिबा॑पि॒बेदि॑न्द्र शूर॒ सोमं॒ मा रि॑षण्यो वसवान॒ वसु॒: सन् ।
उ॒त त्रा॑यस्व गृण॒तो म॒घोनो॑ म॒हश्च॑ रा॒यो रे॒वत॑स्कृधी नः ॥१५॥