SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 047
A
A+
८ सप्तगुरांगिरसः। वैकुण्ठ इन्द्रः। त्रिष्टुप्।
ज॒गृ॒भ्मा ते॒ दक्षि॑णमिन्द्र॒ हस्तं॑ वसू॒यवो॑ वसुपते॒ वसू॑नाम् ।
वि॒द्मा हि त्वा॒ गोप॑तिं शूर॒ गोना॑म॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥१॥
स्वा॒यु॒धं स्वव॑सं सुनी॒थं चतु॑:समुद्रं ध॒रुणं॑ रयी॒णाम् ।
च॒र्कृत्यं॒ शंस्यं॒ भूरि॑वारम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥२॥
सु॒ब्रह्मा॑णं दे॒वव॑न्तं बृ॒हन्त॑मु॒रुं ग॑भी॒रं पृ॒थुबु॑ध्नमिन्द्र ।
श्रु॒तऋ॑षिमु॒ग्रम॑भिमाति॒षाह॑म॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥३॥
स॒नद्वा॑जं॒ विप्र॑वीरं॒ तरु॑त्रं धन॒स्पृतं॑ शूशु॒वांसं॑ सु॒दक्ष॑म् ।
द॒स्यु॒हनं॑ पू॒र्भिद॑मिन्द्र स॒त्यम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥४॥
अश्वा॑वन्तं र॒थिनं॑ वी॒रव॑न्तं सह॒स्रिणं॑ श॒तिनं॒ वाज॑मिन्द्र ।
भ॒द्रव्रा॑तं॒ विप्र॑वीरं स्व॒र्षाम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥५॥
प्र स॒प्तगु॑मृ॒तधी॑तिं सुमे॒धां बृह॒स्पतिं॑ म॒तिरच्छा॑ जिगाति ।
य आ॑ङ्गिर॒सो नम॑सोप॒सद्यो॒ऽस्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥६॥
वनी॑वानो॒ मम॑ दू॒तास॒ इन्द्रं॒ स्तोमा॑श्चरन्ति सुम॒तीरि॑या॒नाः ।
हृ॒दि॒स्पृशो॒ मन॑सा व॒च्यमा॑ना अ॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥७॥
यत्त्वा॒ यामि॑ द॒द्धि तन्न॑ इन्द्र बृ॒हन्तं॒ क्षय॒मस॑मं॒ जना॑नाम् ।
अ॒भि तद्द्यावा॑पृथि॒वी गृ॑णीताम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥८॥
ज॒गृ॒भ्मा ते॒ दक्षि॑णमिन्द्र॒ हस्तं॑ वसू॒यवो॑ वसुपते॒ वसू॑नाम् ।
वि॒द्मा हि त्वा॒ गोप॑तिं शूर॒ गोना॑म॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥१॥
स्वा॒यु॒धं स्वव॑सं सुनी॒थं चतु॑:समुद्रं ध॒रुणं॑ रयी॒णाम् ।
च॒र्कृत्यं॒ शंस्यं॒ भूरि॑वारम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥२॥
सु॒ब्रह्मा॑णं दे॒वव॑न्तं बृ॒हन्त॑मु॒रुं ग॑भी॒रं पृ॒थुबु॑ध्नमिन्द्र ।
श्रु॒तऋ॑षिमु॒ग्रम॑भिमाति॒षाह॑म॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥३॥
स॒नद्वा॑जं॒ विप्र॑वीरं॒ तरु॑त्रं धन॒स्पृतं॑ शूशु॒वांसं॑ सु॒दक्ष॑म् ।
द॒स्यु॒हनं॑ पू॒र्भिद॑मिन्द्र स॒त्यम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥४॥
अश्वा॑वन्तं र॒थिनं॑ वी॒रव॑न्तं सह॒स्रिणं॑ श॒तिनं॒ वाज॑मिन्द्र ।
भ॒द्रव्रा॑तं॒ विप्र॑वीरं स्व॒र्षाम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥५॥
प्र स॒प्तगु॑मृ॒तधी॑तिं सुमे॒धां बृह॒स्पतिं॑ म॒तिरच्छा॑ जिगाति ।
य आ॑ङ्गिर॒सो नम॑सोप॒सद्यो॒ऽस्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥६॥
वनी॑वानो॒ मम॑ दू॒तास॒ इन्द्रं॒ स्तोमा॑श्चरन्ति सुम॒तीरि॑या॒नाः ।
हृ॒दि॒स्पृशो॒ मन॑सा व॒च्यमा॑ना अ॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥७॥
यत्त्वा॒ यामि॑ द॒द्धि तन्न॑ इन्द्र बृ॒हन्तं॒ क्षय॒मस॑मं॒ जना॑नाम् ।
अ॒भि तद्द्यावा॑पृथि॒वी गृ॑णीताम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥८॥