SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 164
A
A+
५ प्रचेता आंगिरसः। दु:स्वप्ननाशनम्। अनुष्टुप् , ३ त्रिष्टुप्, ५ पंक्तिः।
अपे॑हि मनसस्प॒तेऽप॑ क्राम प॒रश्च॑र । प॒रो निॠ॑त्या॒ आ च॑क्ष्व बहु॒धा जीव॑तो॒ मन॑: ॥१॥
भ॒द्रं वै वरं॑ वृणते भ॒द्रं यु॑ञ्जन्ति॒ दक्षि॑णम् । भ॒द्रं वै॑वस्व॒ते चक्षु॑र्बहु॒त्रा जीव॑तो॒ मन॑: ॥२॥
यदा॒शसा॑ नि॒:शसा॑भि॒शसो॑पारि॒म जाग्र॑तो॒ यत्स्व॒पन्त॑: ।
अ॒ग्निर्विश्वा॒न्यप॑ दुष्कृ॒तान्यजु॑ष्टान्या॒रे अ॒स्मद्द॑धातु ॥३॥
यदि॑न्द्र ब्रह्मणस्पतेऽभिद्रो॒हं चरा॑मसि । प्रचे॑ता न आङ्गिर॒सो द्वि॑ष॒तां पा॒त्वंह॑सः ॥४॥
अजै॑ष्मा॒द्यास॑नाम॒ चाभू॒माना॑गसो व॒यम् ।
जा॒ग्र॒त्स्व॒प्नः सं॑क॒ल्पः पा॒पो यं द्वि॒ष्मस्तं स ऋ॑च्छतु॒ यो नो॒ द्वेष्टि॒ तमृ॑च्छतु ॥५॥
अपे॑हि मनसस्प॒तेऽप॑ क्राम प॒रश्च॑र । प॒रो निॠ॑त्या॒ आ च॑क्ष्व बहु॒धा जीव॑तो॒ मन॑: ॥१॥
भ॒द्रं वै वरं॑ वृणते भ॒द्रं यु॑ञ्जन्ति॒ दक्षि॑णम् । भ॒द्रं वै॑वस्व॒ते चक्षु॑र्बहु॒त्रा जीव॑तो॒ मन॑: ॥२॥
यदा॒शसा॑ नि॒:शसा॑भि॒शसो॑पारि॒म जाग्र॑तो॒ यत्स्व॒पन्त॑: ।
अ॒ग्निर्विश्वा॒न्यप॑ दुष्कृ॒तान्यजु॑ष्टान्या॒रे अ॒स्मद्द॑धातु ॥३॥
यदि॑न्द्र ब्रह्मणस्पतेऽभिद्रो॒हं चरा॑मसि । प्रचे॑ता न आङ्गिर॒सो द्वि॑ष॒तां पा॒त्वंह॑सः ॥४॥
अजै॑ष्मा॒द्यास॑नाम॒ चाभू॒माना॑गसो व॒यम् ।
जा॒ग्र॒त्स्व॒प्नः सं॑क॒ल्पः पा॒पो यं द्वि॒ष्मस्तं स ऋ॑च्छतु॒ यो नो॒ द्वेष्टि॒ तमृ॑च्छतु ॥५॥