SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 116
A
A+
९ स्थौरोऽग्नियुतः स्थौरोऽग्नियूपो वा।इन्द्रः त्रिष्टुप्।
पिबा॒ सोमं॑ मह॒त इ॑न्द्रि॒याय॒ पिबा॑ वृ॒त्राय॒ हन्त॑वे शविष्ठ ।
पिब॑ रा॒ये शव॑से हू॒यमा॑न॒: पिब॒ मध्व॑स्तृ॒पदि॒न्द्रा वृ॑षस्व ॥१॥
अ॒स्य पि॑ब क्षु॒मत॒: प्रस्थि॑त॒स्येन्द्र॒ सोम॑स्य॒ वर॒मा सु॒तस्य॑ ।
स्व॒स्ति॒दा मन॑सा मादयस्वाऽर्वाची॒नो रे॒वते॒ सौभ॑गाय ॥२॥
म॒मत्तु॑ त्वा दि॒व्यः सोम॑ इन्द्र म॒मत्तु॒ यः सू॒यते॒ पार्थि॑वेषु ।
म॒मत्तु॒ येन॒ वरि॑वश्च॒कर्थ॑ म॒मत्तु॒ येन॑ निरि॒णासि॒ शत्रू॑न् ॥३॥
आ द्वि॒बर्हा॑ अमि॒नो या॒त्विन्द्रो॒ वृषा॒ हरि॑भ्यां॒ परि॑षिक्त॒मन्ध॑: ।
गव्या सु॒तस्य॒ प्रभृ॑तस्य॒ मध्व॑: स॒त्रा खेदा॑मरुश॒हा वृ॑षस्व ॥४॥
नि ति॒ग्मानि॑ भ्रा॒शय॒न्भ्राश्या॒न्यव॑ स्थि॒रा त॑नुहि यातु॒जूना॑म् ।
उ॒ग्राय॑ ते॒ सहो॒ बलं॑ ददामि प्र॒तीत्या॒ शत्रू॑न्विग॒देषु॑ वृश्च ॥५॥
व्य१र्य इ॑न्द्र तनुहि॒ श्रवां॒स्योज॑: स्थि॒रेव॒ धन्व॑नो॒ऽभिमा॑तीः ।
अ॒स्म॒द्र्य॑ग्वावृधा॒नः सहो॑भि॒रनि॑भृष्टस्त॒न्वं॑ वावृधस्व ॥६॥
इ॒दं ह॒विर्म॑घव॒न्तुभ्यं॑ रा॒तं प्रति॑ सम्रा॒ळहृ॑णानो गृभाय ।
तुभ्यं॑ सु॒तो म॑घव॒न्तुभ्यं॑ प॒क्वो॒३ऽद्धी॑न्द्र॒ पिब॑ च॒ प्रस्थि॑तस्य ॥७॥
अ॒द्धीदि॑न्द्र॒ प्रस्थि॑ते॒मा ह॒वींषि॒ चनो॑ दधिष्व पच॒तोत सोम॑म् ।
प्रय॑स्वन्त॒: प्रति॑ हर्यामसि त्वा स॒त्याः स॑न्तु॒ यज॑मानस्य॒ कामा॑: ॥८॥
प्रेन्द्रा॒ग्निभ्यां॑ सुवच॒स्यामि॑यर्मि॒ सिन्धा॑विव॒ प्रेर॑यं॒ नाव॑म॒र्कैः ।
अया॑ इव॒ परि॑ चरन्ति दे॒वा ये अ॒स्मभ्यं॑ धन॒दा उ॒द्भिद॑श्च ॥९॥
पिबा॒ सोमं॑ मह॒त इ॑न्द्रि॒याय॒ पिबा॑ वृ॒त्राय॒ हन्त॑वे शविष्ठ ।
पिब॑ रा॒ये शव॑से हू॒यमा॑न॒: पिब॒ मध्व॑स्तृ॒पदि॒न्द्रा वृ॑षस्व ॥१॥
अ॒स्य पि॑ब क्षु॒मत॒: प्रस्थि॑त॒स्येन्द्र॒ सोम॑स्य॒ वर॒मा सु॒तस्य॑ ।
स्व॒स्ति॒दा मन॑सा मादयस्वाऽर्वाची॒नो रे॒वते॒ सौभ॑गाय ॥२॥
म॒मत्तु॑ त्वा दि॒व्यः सोम॑ इन्द्र म॒मत्तु॒ यः सू॒यते॒ पार्थि॑वेषु ।
म॒मत्तु॒ येन॒ वरि॑वश्च॒कर्थ॑ म॒मत्तु॒ येन॑ निरि॒णासि॒ शत्रू॑न् ॥३॥
आ द्वि॒बर्हा॑ अमि॒नो या॒त्विन्द्रो॒ वृषा॒ हरि॑भ्यां॒ परि॑षिक्त॒मन्ध॑: ।
गव्या सु॒तस्य॒ प्रभृ॑तस्य॒ मध्व॑: स॒त्रा खेदा॑मरुश॒हा वृ॑षस्व ॥४॥
नि ति॒ग्मानि॑ भ्रा॒शय॒न्भ्राश्या॒न्यव॑ स्थि॒रा त॑नुहि यातु॒जूना॑म् ।
उ॒ग्राय॑ ते॒ सहो॒ बलं॑ ददामि प्र॒तीत्या॒ शत्रू॑न्विग॒देषु॑ वृश्च ॥५॥
व्य१र्य इ॑न्द्र तनुहि॒ श्रवां॒स्योज॑: स्थि॒रेव॒ धन्व॑नो॒ऽभिमा॑तीः ।
अ॒स्म॒द्र्य॑ग्वावृधा॒नः सहो॑भि॒रनि॑भृष्टस्त॒न्वं॑ वावृधस्व ॥६॥
इ॒दं ह॒विर्म॑घव॒न्तुभ्यं॑ रा॒तं प्रति॑ सम्रा॒ळहृ॑णानो गृभाय ।
तुभ्यं॑ सु॒तो म॑घव॒न्तुभ्यं॑ प॒क्वो॒३ऽद्धी॑न्द्र॒ पिब॑ च॒ प्रस्थि॑तस्य ॥७॥
अ॒द्धीदि॑न्द्र॒ प्रस्थि॑ते॒मा ह॒वींषि॒ चनो॑ दधिष्व पच॒तोत सोम॑म् ।
प्रय॑स्वन्त॒: प्रति॑ हर्यामसि त्वा स॒त्याः स॑न्तु॒ यज॑मानस्य॒ कामा॑: ॥८॥
प्रेन्द्रा॒ग्निभ्यां॑ सुवच॒स्यामि॑यर्मि॒ सिन्धा॑विव॒ प्रेर॑यं॒ नाव॑म॒र्कैः ।
अया॑ इव॒ परि॑ चरन्ति दे॒वा ये अ॒स्मभ्यं॑ धन॒दा उ॒द्भिद॑श्च ॥९॥