SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
- 001
 - 002
 - 003
 - 004
 - 005
 - 006
 - 007
 - 008
 - 009
 - 010
 - 011
 - 012
 - 013
 - 014
 - 015
 - 016
 - 017
 - 018
 - 019
 - 020
 - 021
 - 022
 - 023
 - 024
 - 025
 - 026
 - 027
 - 028
 - 029
 - 030
 - 031
 - 032
 - 033
 - 034
 - 035
 - 036
 - 037
 - 038
 - 039
 - 040
 - 041
 - 042
 - 043
 - 044
 - 045
 - 046
 - 047
 - 048
 - 049
 - 050
 - 051
 - 052
 - 053
 - 054
 - 055
 - 056
 - 057
 - 058
 - 059
 - 060
 - 061
 - 062
 - 063
 - 064
 - 065
 - 066
 - 067
 - 068
 - 069
 - 070
 - 071
 - 072
 - 073
 - 074
 - 075
 - 076
 - 077
 - 078
 - 079
 - 080
 - 081
 - 082
 - 083
 - 084
 - 085
 - 086
 - 087
 - 088
 - 089
 - 090
 - 091
 - 092
 - 093
 - 094
 - 095
 - 096
 - 097
 - 098
 - 099
 - 100
 - 101
 - 102
 - 103
 - 104
 - 105
 - 106
 - 107
 - 108
 - 109
 - 110
 - 111
 - 112
 - 113
 - 114
 - 115
 - 116
 - 117
 - 118
 - 119
 - 120
 - 121
 - 122
 - 123
 - 124
 - 125
 - 126
 - 127
 - 128
 - 129
 - 130
 - 131
 - 132
 - 133
 - 134
 - 135
 - 136
 - 137
 - 138
 - 139
 - 140
 - 141
 - 142
 - 143
 - 144
 - 145
 - 146
 - 147
 - 148
 - 149
 - 150
 - 151
 - 152
 - 153
 - 154
 - 155
 - 156
 - 157
 - 158
 - 159
 - 160
 - 161
 - 162
 - 163
 - 164
 - 165
 - 166
 - 167
 - 168
 - 169
 - 170
 - 171
 - 172
 - 173
 - 174
 - 175
 - 176
 - 177
 - 178
 - 179
 - 180
 - 181
 - 182
 - 183
 - 184
 - 185
 - 186
 - 187
 - 188
 - 189
 - 190
 - 191
 
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 051
A
A+
(९) १,३,५,७,९देवाः, २,४,६,८, सौचीकोऽग्निः। २,,४,६,८ देवाः १,३,५,७,९, अग्निः।त्रिष्टुप्।
म॒हत्तदुल्बं॒ स्थवि॑रं॒ तदा॑सी॒द्येनावि॑ष्टितः प्रवि॒वेशि॑था॒पः ।
विश्वा॑ अपश्यद्बहु॒धा ते॑ अग्ने॒ जात॑वेदस्त॒न्वो॑ दे॒व एक॑: ॥१॥
को मा॑ ददर्श कत॒मः स दे॒वो यो मे॑ त॒न्वो॑ बहु॒धा प॒र्यप॑श्यत् ।
क्वाह॑ मित्रावरुणा क्षियन्त्य॒ग्नेर्विश्वा॑: स॒मिधो॑ देव॒यानी॑: ॥२॥
ऐच्छा॑म त्वा बहु॒धा जा॑तवेद॒: प्रवि॑ष्टमग्ने अ॒प्स्वोष॑धीषु ।
तं त्वा॑ य॒मो अ॑चिकेच्चित्रभानो दशान्तरु॒ष्याद॑ति॒रोच॑मानम् ॥३॥
हो॒त्राद॒हं व॑रुण॒ बिभ्य॑दायं॒ नेदे॒व मा॑ यु॒नज॒न्नत्र॑ दे॒वाः ।
तस्य॑ मे त॒न्वो॑ बहु॒धा निवि॑ष्टा ए॒तमर्थं॒ न चि॑केता॒हम॒ग्निः ॥४॥
एहि॒ मनु॑र्देव॒युर्य॒ज्ञका॑मोऽरं॒कृत्या॒ तम॑सि क्षेष्यग्ने ।
सु॒गान्प॒थः कृ॑णुहि देव॒याना॒न्वह॑ ह॒व्यानि॑ सुमन॒स्यमा॑नः ॥५॥
अ॒ग्नेः पूर्वे॒ भ्रात॑रो॒ अर्थ॑मे॒तं र॒थीवाध्वा॑न॒मन्वाव॑रीवुः ।
तस्मा॑द्भि॒या व॑रुण दू॒रमा॑यं गौ॒रो न क्षे॒प्नोर॑विजे॒ ज्याया॑: ॥६॥
कु॒र्मस्त॒ आयु॑र॒जरं॒ यद॑ग्ने॒ यथा॑ यु॒क्तो जा॑तवेदो॒ न रिष्या॑: ।
अथा॑ वहासि सुमन॒स्यमा॑नो भा॒गं दे॒वेभ्यो॑ ह॒विष॑: सुजात ॥७॥
प्र॒या॒जान्मे॑ अनुया॒जाँश्च॒ केव॑ला॒नूर्ज॑स्वन्तं ह॒विषो॑ दत्त भा॒गम् ।
घृ॒तं चा॒पां पुरु॑षं॒ चौष॑धीनाम॒ग्नेश्च॑ दी॒र्घमायु॑रस्तु देवाः ॥८॥
तव॑ प्रया॒जा अ॑नुया॒जाश्च॒ केव॑ल॒ ऊर्ज॑स्वन्तो ह॒विष॑: सन्तु भा॒गाः ।
तवा॑ग्ने य॒ज्ञो॒३ऽयम॑स्तु॒ सर्व॒स्तुभ्यं॑ नमन्तां प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः ॥९॥
म॒हत्तदुल्बं॒ स्थवि॑रं॒ तदा॑सी॒द्येनावि॑ष्टितः प्रवि॒वेशि॑था॒पः ।
विश्वा॑ अपश्यद्बहु॒धा ते॑ अग्ने॒ जात॑वेदस्त॒न्वो॑ दे॒व एक॑: ॥१॥
को मा॑ ददर्श कत॒मः स दे॒वो यो मे॑ त॒न्वो॑ बहु॒धा प॒र्यप॑श्यत् ।
क्वाह॑ मित्रावरुणा क्षियन्त्य॒ग्नेर्विश्वा॑: स॒मिधो॑ देव॒यानी॑: ॥२॥
ऐच्छा॑म त्वा बहु॒धा जा॑तवेद॒: प्रवि॑ष्टमग्ने अ॒प्स्वोष॑धीषु ।
तं त्वा॑ य॒मो अ॑चिकेच्चित्रभानो दशान्तरु॒ष्याद॑ति॒रोच॑मानम् ॥३॥
हो॒त्राद॒हं व॑रुण॒ बिभ्य॑दायं॒ नेदे॒व मा॑ यु॒नज॒न्नत्र॑ दे॒वाः ।
तस्य॑ मे त॒न्वो॑ बहु॒धा निवि॑ष्टा ए॒तमर्थं॒ न चि॑केता॒हम॒ग्निः ॥४॥
एहि॒ मनु॑र्देव॒युर्य॒ज्ञका॑मोऽरं॒कृत्या॒ तम॑सि क्षेष्यग्ने ।
सु॒गान्प॒थः कृ॑णुहि देव॒याना॒न्वह॑ ह॒व्यानि॑ सुमन॒स्यमा॑नः ॥५॥
अ॒ग्नेः पूर्वे॒ भ्रात॑रो॒ अर्थ॑मे॒तं र॒थीवाध्वा॑न॒मन्वाव॑रीवुः ।
तस्मा॑द्भि॒या व॑रुण दू॒रमा॑यं गौ॒रो न क्षे॒प्नोर॑विजे॒ ज्याया॑: ॥६॥
कु॒र्मस्त॒ आयु॑र॒जरं॒ यद॑ग्ने॒ यथा॑ यु॒क्तो जा॑तवेदो॒ न रिष्या॑: ।
अथा॑ वहासि सुमन॒स्यमा॑नो भा॒गं दे॒वेभ्यो॑ ह॒विष॑: सुजात ॥७॥
प्र॒या॒जान्मे॑ अनुया॒जाँश्च॒ केव॑ला॒नूर्ज॑स्वन्तं ह॒विषो॑ दत्त भा॒गम् ।
घृ॒तं चा॒पां पुरु॑षं॒ चौष॑धीनाम॒ग्नेश्च॑ दी॒र्घमायु॑रस्तु देवाः ॥८॥
तव॑ प्रया॒जा अ॑नुया॒जाश्च॒ केव॑ल॒ ऊर्ज॑स्वन्तो ह॒विष॑: सन्तु भा॒गाः ।
तवा॑ग्ने य॒ज्ञो॒३ऽयम॑स्तु॒ सर्व॒स्तुभ्यं॑ नमन्तां प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः ॥९॥



 






