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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 046
A
A+
१० वत्सप्रिर्भालन्दनः। अग्निः। त्रिष्टुप्।
प्र होता॑ जा॒तो म॒हान्न॑भो॒विन्नृ॒षद्वा॑ सीदद॒पामु॒पस्थे॑ ।
दधि॒र्यो धायि॒ स ते॒ वयां॑सि य॒न्ता वसू॑नि विध॒ते त॑नू॒पाः ॥१॥
इ॒मं वि॒धन्तो॑ अ॒पां स॒धस्थे॑ प॒शुं न न॒ष्टं प॒दैरनु॑ ग्मन् ।
गुहा॒ चत॑न्तमु॒शिजो॒ नमो॑भिरि॒च्छन्तो॒ धीरा॒ भृग॑वोऽविन्दन् ॥२॥
इ॒मं त्रि॒तो भूर्य॑विन्ददि॒च्छन्वै॑भूव॒सो मू॒र्धन्यघ्न्या॑याः ।
स शेवृ॑धो जा॒त आ ह॒र्म्येषु॒ नाभि॒र्युवा॑ भवति रोच॒नस्य॑ ॥३॥
म॒न्द्रं होता॑रमु॒शिजो॒ नमो॑भि॒: प्राञ्चं॑ य॒ज्ञं ने॒तार॑मध्व॒राणा॑म् ।
वि॒शाम॑कृण्वन्नर॒तिं पा॑व॒कं ह॑व्य॒वाहं॒ दध॑तो॒ मानु॑षेषु ॥४॥
प्र भू॒र्जय॑न्तं म॒हां वि॑पो॒धां मू॒रा अमू॑रं पु॒रां द॒र्माण॑म् ।
नय॑न्तो॒ गर्भं॑ व॒नां धियं॑ धु॒र्हिरि॑श्मश्रुं॒ नार्वा॑णं॒ धन॑र्चम् ॥५॥
नि प॒स्त्या॑सु त्रि॒तः स्त॑भू॒यन्परि॑वीतो॒ योनौ॑ सीदद॒न्तः ।
अत॑: सं॒गृभ्या॑ वि॒शां दमू॑ना॒ विध॑र्मणाय॒न्त्रैरी॑यते॒ नॄन् ॥६॥
अ॒स्याजरा॑सो द॒माम॒रित्रा॑ अ॒र्चद्धू॑मासो अ॒ग्नय॑: पाव॒काः ।
श्वि॒ती॒चय॑: श्वा॒त्रासो॑ भुर॒ण्यवो॑ वन॒र्षदो॑ वा॒यवो॒ न सोमा॑: ॥७॥
प्र जि॒ह्वया॑ भरते॒ वेपो॑ अ॒ग्निः प्र व॒युना॑नि॒ चेत॑सा पृथि॒व्याः ।
तमा॒यव॑: शु॒चय॑न्तं पाव॒कं म॒न्द्रं होता॑रं दधिरे॒ यजि॑ष्ठम् ॥८॥
द्यावा॒ यम॒ग्निं पृ॑थि॒वी जनि॑ष्टा॒माप॒स्त्वष्टा॒ भृग॑वो॒ यं सहो॑भिः ।
ई॒ळेन्यं॑ प्रथ॒मं मा॑त॒रिश्वा॑ दे॒वास्त॑तक्षु॒र्मन॑वे॒ यज॑त्रम् ॥९॥
यं त्वा॑ दे॒वा द॑धि॒रे ह॑व्य॒वाहं॑ पुरु॒स्पृहो॒ मानु॑षासो॒ यज॑त्रम् ।
स याम॑न्नग्ने स्तुव॒ते वयो॑ धा॒: प्र दे॑व॒यन्य॒शस॒: सं हि पू॒र्वीः ॥१०॥
प्र होता॑ जा॒तो म॒हान्न॑भो॒विन्नृ॒षद्वा॑ सीदद॒पामु॒पस्थे॑ ।
दधि॒र्यो धायि॒ स ते॒ वयां॑सि य॒न्ता वसू॑नि विध॒ते त॑नू॒पाः ॥१॥
इ॒मं वि॒धन्तो॑ अ॒पां स॒धस्थे॑ प॒शुं न न॒ष्टं प॒दैरनु॑ ग्मन् ।
गुहा॒ चत॑न्तमु॒शिजो॒ नमो॑भिरि॒च्छन्तो॒ धीरा॒ भृग॑वोऽविन्दन् ॥२॥
इ॒मं त्रि॒तो भूर्य॑विन्ददि॒च्छन्वै॑भूव॒सो मू॒र्धन्यघ्न्या॑याः ।
स शेवृ॑धो जा॒त आ ह॒र्म्येषु॒ नाभि॒र्युवा॑ भवति रोच॒नस्य॑ ॥३॥
म॒न्द्रं होता॑रमु॒शिजो॒ नमो॑भि॒: प्राञ्चं॑ य॒ज्ञं ने॒तार॑मध्व॒राणा॑म् ।
वि॒शाम॑कृण्वन्नर॒तिं पा॑व॒कं ह॑व्य॒वाहं॒ दध॑तो॒ मानु॑षेषु ॥४॥
प्र भू॒र्जय॑न्तं म॒हां वि॑पो॒धां मू॒रा अमू॑रं पु॒रां द॒र्माण॑म् ।
नय॑न्तो॒ गर्भं॑ व॒नां धियं॑ धु॒र्हिरि॑श्मश्रुं॒ नार्वा॑णं॒ धन॑र्चम् ॥५॥
नि प॒स्त्या॑सु त्रि॒तः स्त॑भू॒यन्परि॑वीतो॒ योनौ॑ सीदद॒न्तः ।
अत॑: सं॒गृभ्या॑ वि॒शां दमू॑ना॒ विध॑र्मणाय॒न्त्रैरी॑यते॒ नॄन् ॥६॥
अ॒स्याजरा॑सो द॒माम॒रित्रा॑ अ॒र्चद्धू॑मासो अ॒ग्नय॑: पाव॒काः ।
श्वि॒ती॒चय॑: श्वा॒त्रासो॑ भुर॒ण्यवो॑ वन॒र्षदो॑ वा॒यवो॒ न सोमा॑: ॥७॥
प्र जि॒ह्वया॑ भरते॒ वेपो॑ अ॒ग्निः प्र व॒युना॑नि॒ चेत॑सा पृथि॒व्याः ।
तमा॒यव॑: शु॒चय॑न्तं पाव॒कं म॒न्द्रं होता॑रं दधिरे॒ यजि॑ष्ठम् ॥८॥
द्यावा॒ यम॒ग्निं पृ॑थि॒वी जनि॑ष्टा॒माप॒स्त्वष्टा॒ भृग॑वो॒ यं सहो॑भिः ।
ई॒ळेन्यं॑ प्रथ॒मं मा॑त॒रिश्वा॑ दे॒वास्त॑तक्षु॒र्मन॑वे॒ यज॑त्रम् ॥९॥
यं त्वा॑ दे॒वा द॑धि॒रे ह॑व्य॒वाहं॑ पुरु॒स्पृहो॒ मानु॑षासो॒ यज॑त्रम् ।
स याम॑न्नग्ने स्तुव॒ते वयो॑ धा॒: प्र दे॑व॒यन्य॒शस॒: सं हि पू॒र्वीः ॥१०॥