SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 123
A
A+
८ वेनो भार्गवः। वेनः। त्रिष्टुप्।
अ॒यं वे॒नश्चो॑दय॒त्पृश्नि॑गर्भा॒ ज्योति॑र्जरायू॒ रज॑सो वि॒माने॑ ।
इ॒मम॒पां सं॑ग॒मे सूर्य॑स्य॒ शिशुं॒ न विप्रा॑ म॒तिभी॑ रिहन्ति ॥१
स॒मु॒द्रादू॒र्मिमुदि॑यर्ति वे॒नो न॑भो॒जाः पृ॒ष्ठं ह॑र्य॒तस्य॑ दर्शि ।
ऋ॒तस्य॒ साना॒वधि॑ वि॒ष्टपि॒ भ्राट् स॑मा॒नं योनि॑म॒भ्य॑नूषत॒ व्राः ॥२॥
स॒मा॒नं पू॒र्वीर॒भि वा॑वशा॒नास्तिष्ठ॑न्व॒त्सस्य॑ मा॒तर॒: सनी॑ळाः ।
ऋ॒तस्य॒ साना॒वधि॑ चक्रमा॒णा रि॒हन्ति॒ मध्वो॑ अ॒मृत॑स्य॒ वाणी॑: ॥३॥
जा॒नन्तो॑ रू॒पम॑कृपन्त॒ विप्रा॑ मृ॒गस्य॒ घोषं॑ महि॒षस्य॒ हि ग्मन् ।
ऋ॒तेन॒ यन्तो॒ अधि॒ सिन्धु॑मस्थुर्वि॒दद्ग॑न्ध॒र्वो अ॒मृता॑नि॒ नाम॑ ॥४॥
अ॒प्स॒रा जा॒रमु॑पसिष्मिया॒णा योषा॑ बिभर्ति पर॒मे व्यो॑मन् ।
चर॑त्प्रि॒यस्य॒ योनि॑षु प्रि॒यः सन्त्सीद॑त्प॒क्षे हि॑र॒ण्यये॒ स वे॒नः ॥५॥
नाके॑ सुप॒र्णमुप॒ यत्पत॑न्तं हृ॒दा वेन॑न्तो अ॒भ्यच॑क्षत त्वा ।
हिर॑ण्यपक्षं॒ वरु॑णस्य दू॒तं य॒मस्य॒ योनौ॑ शकु॒नं भु॑र॒ण्युम् ॥६॥
ऊ॒र्ध्वो ग॑न्ध॒र्वो अधि॒ नाके॑ अस्थात्प्र॒त्यङ्चि॒त्रा बिभ्र॑द॒स्यायु॑धानि ।
वसा॑नो॒ अत्कं॑ सुर॒भिं दृ॒शे कं स्व१र्ण नाम॑ जनत प्रि॒याणि॑ ॥७॥
द्र॒प्सः स॑मु॒द्रम॒भि यज्जिगा॑ति॒ पश्य॒न्गृध्र॑स्य॒ चक्ष॑सा॒ विध॑र्मन् ।
भा॒नुः शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॑ चका॒नस्तृ॒तीये॑ चक्रे॒ रज॑सि प्रि॒याणि॑ ॥८॥
अ॒यं वे॒नश्चो॑दय॒त्पृश्नि॑गर्भा॒ ज्योति॑र्जरायू॒ रज॑सो वि॒माने॑ ।
इ॒मम॒पां सं॑ग॒मे सूर्य॑स्य॒ शिशुं॒ न विप्रा॑ म॒तिभी॑ रिहन्ति ॥१
स॒मु॒द्रादू॒र्मिमुदि॑यर्ति वे॒नो न॑भो॒जाः पृ॒ष्ठं ह॑र्य॒तस्य॑ दर्शि ।
ऋ॒तस्य॒ साना॒वधि॑ वि॒ष्टपि॒ भ्राट् स॑मा॒नं योनि॑म॒भ्य॑नूषत॒ व्राः ॥२॥
स॒मा॒नं पू॒र्वीर॒भि वा॑वशा॒नास्तिष्ठ॑न्व॒त्सस्य॑ मा॒तर॒: सनी॑ळाः ।
ऋ॒तस्य॒ साना॒वधि॑ चक्रमा॒णा रि॒हन्ति॒ मध्वो॑ अ॒मृत॑स्य॒ वाणी॑: ॥३॥
जा॒नन्तो॑ रू॒पम॑कृपन्त॒ विप्रा॑ मृ॒गस्य॒ घोषं॑ महि॒षस्य॒ हि ग्मन् ।
ऋ॒तेन॒ यन्तो॒ अधि॒ सिन्धु॑मस्थुर्वि॒दद्ग॑न्ध॒र्वो अ॒मृता॑नि॒ नाम॑ ॥४॥
अ॒प्स॒रा जा॒रमु॑पसिष्मिया॒णा योषा॑ बिभर्ति पर॒मे व्यो॑मन् ।
चर॑त्प्रि॒यस्य॒ योनि॑षु प्रि॒यः सन्त्सीद॑त्प॒क्षे हि॑र॒ण्यये॒ स वे॒नः ॥५॥
नाके॑ सुप॒र्णमुप॒ यत्पत॑न्तं हृ॒दा वेन॑न्तो अ॒भ्यच॑क्षत त्वा ।
हिर॑ण्यपक्षं॒ वरु॑णस्य दू॒तं य॒मस्य॒ योनौ॑ शकु॒नं भु॑र॒ण्युम् ॥६॥
ऊ॒र्ध्वो ग॑न्ध॒र्वो अधि॒ नाके॑ अस्थात्प्र॒त्यङ्चि॒त्रा बिभ्र॑द॒स्यायु॑धानि ।
वसा॑नो॒ अत्कं॑ सुर॒भिं दृ॒शे कं स्व१र्ण नाम॑ जनत प्रि॒याणि॑ ॥७॥
द्र॒प्सः स॑मु॒द्रम॒भि यज्जिगा॑ति॒ पश्य॒न्गृध्र॑स्य॒ चक्ष॑सा॒ विध॑र्मन् ।
भा॒नुः शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॑ चका॒नस्तृ॒तीये॑ चक्रे॒ रज॑सि प्रि॒याणि॑ ॥८॥