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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 09 Sukta 008
A
A+
९ काश्यपोऽसितो देवलो वा । पवमान: सोम: । गायत्री ।
ए॒ते सोमा॑ अ॒भि प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒ काम॑मक्षरन् । वर्ध॑न्तो अस्य वी॒र्य॑म् ॥१॥
पु॒ना॒नास॑श्चमू॒षदो॒ गच्छ॑न्तो वा॒युम॒श्विना॑ । ते नो॑ धान्तु सु॒वीर्य॑म् ॥२॥
इन्द्र॑स्य सोम॒ राध॑से पुना॒नो हार्दि॑ चोदय । ऋ॒तस्य॒ योनि॑मा॒सद॑म् ॥३॥
मृ॒जन्ति॑ त्वा॒ दश॒ क्षिपो॑ हि॒न्वन्ति॑ स॒प्त धी॒तय॑: । अनु॒ विप्रा॑ अमादिषुः ॥४॥
दे॒वेभ्य॑स्त्वा॒ मदा॑य॒ कं सृ॑जा॒नमति॑ मे॒ष्य॑: । सं गोभि॑र्वासयामसि ॥५॥
पु॒ना॒नः क॒लशे॒ष्वा वस्त्रा॑ण्यरु॒षो हरि॑: । परि॒ गव्या॑न्यव्यत ॥६॥
म॒घोन॒ आ प॑वस्व नो ज॒हि विश्वा॒ अप॒ द्विष॑: । इन्दो॒ सखा॑य॒मा वि॑श ॥७॥
वृ॒ष्टिं दि॒वः परि॑ स्रव द्यु॒म्नं पृ॑थि॒व्या अधि॑ । सहो॑ नः सोम पृ॒त्सु धा॑: ॥८॥
नृ॒चक्ष॑सं त्वा व॒यमिन्द्र॑पीतं स्व॒र्विद॑म् । भ॒क्षी॒महि॑ प्र॒जामिष॑म् ॥९॥
ए॒ते सोमा॑ अ॒भि प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒ काम॑मक्षरन् । वर्ध॑न्तो अस्य वी॒र्य॑म् ॥१॥
पु॒ना॒नास॑श्चमू॒षदो॒ गच्छ॑न्तो वा॒युम॒श्विना॑ । ते नो॑ धान्तु सु॒वीर्य॑म् ॥२॥
इन्द्र॑स्य सोम॒ राध॑से पुना॒नो हार्दि॑ चोदय । ऋ॒तस्य॒ योनि॑मा॒सद॑म् ॥३॥
मृ॒जन्ति॑ त्वा॒ दश॒ क्षिपो॑ हि॒न्वन्ति॑ स॒प्त धी॒तय॑: । अनु॒ विप्रा॑ अमादिषुः ॥४॥
दे॒वेभ्य॑स्त्वा॒ मदा॑य॒ कं सृ॑जा॒नमति॑ मे॒ष्य॑: । सं गोभि॑र्वासयामसि ॥५॥
पु॒ना॒नः क॒लशे॒ष्वा वस्त्रा॑ण्यरु॒षो हरि॑: । परि॒ गव्या॑न्यव्यत ॥६॥
म॒घोन॒ आ प॑वस्व नो ज॒हि विश्वा॒ अप॒ द्विष॑: । इन्दो॒ सखा॑य॒मा वि॑श ॥७॥
वृ॒ष्टिं दि॒वः परि॑ स्रव द्यु॒म्नं पृ॑थि॒व्या अधि॑ । सहो॑ नः सोम पृ॒त्सु धा॑: ॥८॥
नृ॒चक्ष॑सं त्वा व॒यमिन्द्र॑पीतं स्व॒र्विद॑म् । भ॒क्षी॒महि॑ प्र॒जामिष॑म् ॥९॥