SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 113
A
A+
१० वैरूपः शतप्रभेदनः। इन्द्रः। जगती, १० त्रिष्टुप्।
तम॑स्य॒ द्यावा॑पृथि॒वी सचे॑तसा॒ विश्वे॑भिर्दे॒वैरनु॒ शुष्म॑मावताम् ।
यदैत्कृ॑ण्वा॒नो म॑हि॒मान॑मिन्द्रि॒यं पी॒त्वी सोम॑स्य॒ क्रतु॑माँ अवर्धत ॥१॥
तम॑स्य॒ विष्णु॑र्महि॒मान॒मोज॑सां॒ऽशुं द॑ध॒न्वान्मधु॑नो॒ वि र॑प्शते ।
दे॒वेभि॒रिन्द्रो॑ म॒घवा॑ स॒याव॑भिर्वृ॒त्रं ज॑घ॒न्वाँ अ॑भव॒द्वरे॑ण्यः ॥२॥
वृ॒त्रेण॒ यदहि॑ना॒ बिभ्र॒दायु॑धा स॒मस्थि॑था यु॒धये॒ शंस॑मा॒विदे॑ ।
विश्वे॑ ते॒ अत्र॑ म॒रुत॑: स॒ह त्मनाऽव॑र्धन्नुग्र महि॒मान॑मिन्द्रि॒यम् ॥३॥
ज॒ज्ञा॒न ए॒व व्य॑बाधत॒ स्पृध॒: प्राप॑श्यद्वी॒रो अ॒भि पौंस्यं॒ रण॑म् ।
अवृ॑श्च॒दद्रि॒मव॑ स॒स्यद॑: सृज॒दस्त॑भ्ना॒न्नाकं॑ स्वप॒स्यया॑ पृ॒थुम् ॥४॥
आदिन्द्र॑: स॒त्रा तवि॑षीरपत्यत॒ वरी॑यो॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॑बाधत ।
अवा॑भरद्धृषि॒तो वज्र॑माय॒सं शेवं॑ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय दा॒शुषे॑ ॥५॥
इन्द्र॒स्यात्र॒ तवि॑षीभ्यो विर॒प्शिन॑ ऋघाय॒तो अ॑रंहयन्त म॒न्यवे॑ ।
वृ॒त्रं यदु॒ग्रो व्यवृ॑श्च॒दोज॑सा॒ऽपो बिभ्र॑तं॒ तम॑सा॒ परी॑वृतम् ॥६॥
या वी॒र्या॑णि प्रथ॒मानि॒ कर्त्वा॑ महि॒त्वेभि॒र्यत॑मानौ समी॒यतु॑: ।
ध्वा॒न्तं तमोऽव॑ दध्वसे ह॒त इन्द्रो॑ म॒ह्ना पू॒र्वहू॑तावपत्यत ॥७॥
विश्वे॑ दे॒वासो॒ अध॒ वृष्ण्या॑नि॒ तेऽव॑र्धय॒न्त्सोम॑वत्या वच॒स्यया॑ ।
र॒द्धं वृ॒त्रमहि॒मिन्द्र॑स्य॒ हन्म॑ना॒ऽग्निर्न जम्भै॑स्तृ॒ष्वन्न॑मावयत् ॥८॥
भूरि॒ दक्षे॑भिर्वच॒नेभि॒ॠक्व॑भिः स॒ख्येभि॑: स॒ख्यानि॒ प्र वो॑चत ।
इन्द्रो॒ धुनिं॑ च॒ चुमु॑रिं च द॒म्भय॑ञ्छ्रद्धामन॒स्या शृ॑णुते द॒भीत॑ये ॥९॥
त्वं पु॒रूण्या भ॑रा॒ स्वश्व्या॒ येभि॒र्मंसै॑ नि॒वच॑नानि॒ शंस॑न् ।
सु॒गेभि॒र्विश्वा॑ दुरि॒ता त॑रेम वि॒दो षु ण॑ उर्वि॒या गा॒धम॒द्य ॥१०॥
तम॑स्य॒ द्यावा॑पृथि॒वी सचे॑तसा॒ विश्वे॑भिर्दे॒वैरनु॒ शुष्म॑मावताम् ।
यदैत्कृ॑ण्वा॒नो म॑हि॒मान॑मिन्द्रि॒यं पी॒त्वी सोम॑स्य॒ क्रतु॑माँ अवर्धत ॥१॥
तम॑स्य॒ विष्णु॑र्महि॒मान॒मोज॑सां॒ऽशुं द॑ध॒न्वान्मधु॑नो॒ वि र॑प्शते ।
दे॒वेभि॒रिन्द्रो॑ म॒घवा॑ स॒याव॑भिर्वृ॒त्रं ज॑घ॒न्वाँ अ॑भव॒द्वरे॑ण्यः ॥२॥
वृ॒त्रेण॒ यदहि॑ना॒ बिभ्र॒दायु॑धा स॒मस्थि॑था यु॒धये॒ शंस॑मा॒विदे॑ ।
विश्वे॑ ते॒ अत्र॑ म॒रुत॑: स॒ह त्मनाऽव॑र्धन्नुग्र महि॒मान॑मिन्द्रि॒यम् ॥३॥
ज॒ज्ञा॒न ए॒व व्य॑बाधत॒ स्पृध॒: प्राप॑श्यद्वी॒रो अ॒भि पौंस्यं॒ रण॑म् ।
अवृ॑श्च॒दद्रि॒मव॑ स॒स्यद॑: सृज॒दस्त॑भ्ना॒न्नाकं॑ स्वप॒स्यया॑ पृ॒थुम् ॥४॥
आदिन्द्र॑: स॒त्रा तवि॑षीरपत्यत॒ वरी॑यो॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॑बाधत ।
अवा॑भरद्धृषि॒तो वज्र॑माय॒सं शेवं॑ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय दा॒शुषे॑ ॥५॥
इन्द्र॒स्यात्र॒ तवि॑षीभ्यो विर॒प्शिन॑ ऋघाय॒तो अ॑रंहयन्त म॒न्यवे॑ ।
वृ॒त्रं यदु॒ग्रो व्यवृ॑श्च॒दोज॑सा॒ऽपो बिभ्र॑तं॒ तम॑सा॒ परी॑वृतम् ॥६॥
या वी॒र्या॑णि प्रथ॒मानि॒ कर्त्वा॑ महि॒त्वेभि॒र्यत॑मानौ समी॒यतु॑: ।
ध्वा॒न्तं तमोऽव॑ दध्वसे ह॒त इन्द्रो॑ म॒ह्ना पू॒र्वहू॑तावपत्यत ॥७॥
विश्वे॑ दे॒वासो॒ अध॒ वृष्ण्या॑नि॒ तेऽव॑र्धय॒न्त्सोम॑वत्या वच॒स्यया॑ ।
र॒द्धं वृ॒त्रमहि॒मिन्द्र॑स्य॒ हन्म॑ना॒ऽग्निर्न जम्भै॑स्तृ॒ष्वन्न॑मावयत् ॥८॥
भूरि॒ दक्षे॑भिर्वच॒नेभि॒ॠक्व॑भिः स॒ख्येभि॑: स॒ख्यानि॒ प्र वो॑चत ।
इन्द्रो॒ धुनिं॑ च॒ चुमु॑रिं च द॒म्भय॑ञ्छ्रद्धामन॒स्या शृ॑णुते द॒भीत॑ये ॥९॥
त्वं पु॒रूण्या भ॑रा॒ स्वश्व्या॒ येभि॒र्मंसै॑ नि॒वच॑नानि॒ शंस॑न् ।
सु॒गेभि॒र्विश्वा॑ दुरि॒ता त॑रेम वि॒दो षु ण॑ उर्वि॒या गा॒धम॒द्य ॥१०॥