SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 101
A
A+
१२ बुधः सौम्यः। विश्वे देवा, ऋत्विजो वा । त्रिष्टुप् ४, ६ गायत्री, ५ बृहती, ९,१२ जगती।
उद्बु॑ध्यध्वं॒ सम॑नसः सखाय॒: सम॒ग्निमि॑न्ध्वं ब॒हव॒: सनी॑ळाः ।
द॒धि॒क्राम॒ग्निमु॒षसं॑ च दे॒वीमिन्द्रा॑व॒तोऽव॑से॒ नि ह्व॑ये वः ॥१॥
म॒न्द्रा कृ॑णुध्वं॒ धिय॒ आ त॑नुध्वं॒ नाव॑मरित्र॒पर॑णीं कृणुध्वम् ।
इष्कृ॑णुध्व॒मायु॒धारं॑ कृणुध्वं॒ प्राञ्चं॑ य॒ज्ञं प्र ण॑यता सखायः ॥२॥
यु॒नक्त॒ सीरा॒ वि यु॒गा त॑नुध्वं कृ॒ते योनौ॑ वपते॒ह बीज॑म् ।
गि॒रा च॑ श्रु॒ष्टिः सभ॑रा॒ अस॑न्नो॒ नेदी॑य॒ इत्सृ॒ण्य॑: प॒क्वमेया॑त् ॥३॥
सीरा॑ युञ्जन्ति क॒वयो॑ यु॒गा वि त॑न्वते॒ पृथ॑क् । धीरा॑ दे॒वेषु॑ सुम्न॒या ॥४॥
निरा॑हा॒वान्कृ॑णोतन॒ सं व॑र॒त्रा द॑धातन । सि॒ञ्चाम॑हा अव॒तमु॒द्रिणं॑ व॒यं सु॒षेक॒मनु॑पक्षितम् ॥५॥
इष्कृ॑ताहावमव॒तं सु॑वर॒त्रं सु॑षेच॒नम् । उ॒द्रिणं॑ सिञ्चे॒ अक्षि॑तम् ॥६॥
प्री॒णी॒ताश्वा॑न्हि॒तं ज॑याथ स्वस्ति॒वाहं॒ रथ॒मित्कृ॑णुध्वम् ।
द्रोणा॑हावमव॒तमश्म॑चक्र॒मंस॑त्रकोशं सिञ्चता नृ॒पाण॑म् ॥७॥
व्र॒जं कृ॑णुध्वं॒ स हि वो॑ नृ॒पाणो॒ वर्म॑ सीव्यध्वं बहु॒ला पृ॒थूनि॑ ।
पुर॑: कृणुध्व॒माय॑सी॒रधृ॑ष्टा॒ मा व॑: सुस्रोच्चम॒सो दृंह॑ता॒ तम् ॥८॥
आ वो॒ धियं॑ य॒ज्ञियां॑ वर्त ऊ॒तये॒ देवा॑ दे॒वीं य॑ज॒तां य॒ज्ञिया॑मि॒ह ।
सा नो॑ दुहीय॒द्यव॑सेव ग॒त्वी स॒हस्र॑धारा॒ पय॑सा म॒ही गौः ॥९॥
आ तू षि॑ञ्च॒ हरि॑मीं॒ द्रोरु॒पस्थे॒ वाशी॑भिस्तक्षताश्म॒न्मयी॑भिः ।
परि॑ ष्वजध्वं॒ दश॑ क॒क्ष्या॑भिरु॒भे धुरौ॒ प्रति॒ वह्निं॑ युनक्त ॥१०॥
उ॒भे धुरौ॒ वह्नि॑रा॒पिब्द॑मानो॒ऽन्तर्योने॑व चरति द्वि॒जानि॑: ।
वन॒स्पतिं॒ वन॒ आस्था॑पयध्वं॒ नि षू द॑धिध्व॒मख॑नन्त॒ उत्स॑म् ॥११॥
कपृ॑न्नरः कपृ॒थमुद्द॑धातन चो॒दय॑त खु॒दत॒ वाज॑सातये ।
नि॒ष्टि॒ग्र्य॑: पु॒त्रमा च्या॑वयो॒तय॒ इन्द्रं॑ स॒बाध॑ इ॒ह सोम॑पीतये ॥१२॥
उद्बु॑ध्यध्वं॒ सम॑नसः सखाय॒: सम॒ग्निमि॑न्ध्वं ब॒हव॒: सनी॑ळाः ।
द॒धि॒क्राम॒ग्निमु॒षसं॑ च दे॒वीमिन्द्रा॑व॒तोऽव॑से॒ नि ह्व॑ये वः ॥१॥
म॒न्द्रा कृ॑णुध्वं॒ धिय॒ आ त॑नुध्वं॒ नाव॑मरित्र॒पर॑णीं कृणुध्वम् ।
इष्कृ॑णुध्व॒मायु॒धारं॑ कृणुध्वं॒ प्राञ्चं॑ य॒ज्ञं प्र ण॑यता सखायः ॥२॥
यु॒नक्त॒ सीरा॒ वि यु॒गा त॑नुध्वं कृ॒ते योनौ॑ वपते॒ह बीज॑म् ।
गि॒रा च॑ श्रु॒ष्टिः सभ॑रा॒ अस॑न्नो॒ नेदी॑य॒ इत्सृ॒ण्य॑: प॒क्वमेया॑त् ॥३॥
सीरा॑ युञ्जन्ति क॒वयो॑ यु॒गा वि त॑न्वते॒ पृथ॑क् । धीरा॑ दे॒वेषु॑ सुम्न॒या ॥४॥
निरा॑हा॒वान्कृ॑णोतन॒ सं व॑र॒त्रा द॑धातन । सि॒ञ्चाम॑हा अव॒तमु॒द्रिणं॑ व॒यं सु॒षेक॒मनु॑पक्षितम् ॥५॥
इष्कृ॑ताहावमव॒तं सु॑वर॒त्रं सु॑षेच॒नम् । उ॒द्रिणं॑ सिञ्चे॒ अक्षि॑तम् ॥६॥
प्री॒णी॒ताश्वा॑न्हि॒तं ज॑याथ स्वस्ति॒वाहं॒ रथ॒मित्कृ॑णुध्वम् ।
द्रोणा॑हावमव॒तमश्म॑चक्र॒मंस॑त्रकोशं सिञ्चता नृ॒पाण॑म् ॥७॥
व्र॒जं कृ॑णुध्वं॒ स हि वो॑ नृ॒पाणो॒ वर्म॑ सीव्यध्वं बहु॒ला पृ॒थूनि॑ ।
पुर॑: कृणुध्व॒माय॑सी॒रधृ॑ष्टा॒ मा व॑: सुस्रोच्चम॒सो दृंह॑ता॒ तम् ॥८॥
आ वो॒ धियं॑ य॒ज्ञियां॑ वर्त ऊ॒तये॒ देवा॑ दे॒वीं य॑ज॒तां य॒ज्ञिया॑मि॒ह ।
सा नो॑ दुहीय॒द्यव॑सेव ग॒त्वी स॒हस्र॑धारा॒ पय॑सा म॒ही गौः ॥९॥
आ तू षि॑ञ्च॒ हरि॑मीं॒ द्रोरु॒पस्थे॒ वाशी॑भिस्तक्षताश्म॒न्मयी॑भिः ।
परि॑ ष्वजध्वं॒ दश॑ क॒क्ष्या॑भिरु॒भे धुरौ॒ प्रति॒ वह्निं॑ युनक्त ॥१०॥
उ॒भे धुरौ॒ वह्नि॑रा॒पिब्द॑मानो॒ऽन्तर्योने॑व चरति द्वि॒जानि॑: ।
वन॒स्पतिं॒ वन॒ आस्था॑पयध्वं॒ नि षू द॑धिध्व॒मख॑नन्त॒ उत्स॑म् ॥११॥
कपृ॑न्नरः कपृ॒थमुद्द॑धातन चो॒दय॑त खु॒दत॒ वाज॑सातये ।
नि॒ष्टि॒ग्र्य॑: पु॒त्रमा च्या॑वयो॒तय॒ इन्द्रं॑ स॒बाध॑ इ॒ह सोम॑पीतये ॥१२॥