SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 10
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 10 Sukta 077
A
A+
८ स्यूमरश्मिर्भार्गवः। मरुतः। त्रिष्टुप् , ५ जगती।
अ॒भ्र॒प्रुषो॒ न वा॒चा प्रु॑षा॒ वसु॑ ह॒विष्म॑न्तो॒ न य॒ज्ञा वि॑जा॒नुष॑: ।
सु॒मारु॑तं॒ न ब्र॒ह्माण॑म॒र्हसे॑ ग॒णम॑स्तोष्येषां॒ न शो॒भसे॑ ॥१॥
श्रि॒ये मर्या॑सो अ॒ञ्जीँर॑कृण्वत सु॒मारु॑तं॒ न पू॒र्वीरति॒ क्षप॑: ।
दि॒वस्पु॒त्रास॒ एता॒ न ये॑तिर आदि॒त्यास॒स्ते अ॒क्रा न वा॑वृधुः ॥२॥
प्र ये दि॒वः पृ॑थि॒व्या न ब॒र्हणा॒ त्मना॑ रिरि॒च्रे अ॒भ्रान्न सूर्य॑: ।
पाज॑स्वन्तो॒ न वी॒राः प॑न॒स्यवो॑ रि॒शाद॑सो॒ न मर्या॑ अ॒भिद्य॑वः ॥३॥
यु॒ष्माकं॑ बु॒ध्ने अ॒पां न याम॑नि विथु॒र्यति॒ न म॒ही श्र॑थ॒र्यति॑ ।
वि॒श्वप्सु॑र्य॒ज्ञो अ॒र्वाग॒यं सु व॒: प्रय॑स्वन्तो॒ न स॒त्राच॒ आ ग॑त ॥४॥
यू॒यं धू॒र्षु प्र॒युजो॒ न र॒श्मिभि॒र्ज्योति॑ष्मन्तो॒ न भा॒सा व्यु॑ष्टिषु ।
श्ये॒नासो॒ न स्वय॑शसो रि॒शाद॑सः प्र॒वासो॒ न प्रसि॑तासः परि॒प्रुष॑: ॥५॥
प्र यद्वह॑ध्वे मरुतः परा॒काद्यू॒यं म॒हः सं॒वर॑णस्य॒ वस्व॑: ।
वि॒दा॒नासो॑ वसवो॒ राध्य॑स्या॒ऽऽराच्चि॒द्द्वेष॑: सनु॒तर्यु॑योत ॥६॥
य उ॒दृचि॑ य॒ज्ञे अ॑ध्वरे॒ष्ठा म॒रुद्भ्यो॒ न मानु॑षो॒ ददा॑शत् ।
रे॒वत्स वयो॑ दधते सु॒वीरं॒ स दे॒वाना॒मपि॑ गोपी॒थे अ॑स्तु ॥७॥
ते हि य॒ज्ञेषु॑ य॒ज्ञिया॑स॒ ऊमा॑ आदि॒त्येन॒ नाम्ना॒ शम्भ॑विष्ठाः ।
ते नो॑ऽवन्तु रथ॒तूर्म॑नी॒षां म॒हश्च॒ याम॑न्नध्व॒रे च॑का॒नाः ॥८॥
अ॒भ्र॒प्रुषो॒ न वा॒चा प्रु॑षा॒ वसु॑ ह॒विष्म॑न्तो॒ न य॒ज्ञा वि॑जा॒नुष॑: ।
सु॒मारु॑तं॒ न ब्र॒ह्माण॑म॒र्हसे॑ ग॒णम॑स्तोष्येषां॒ न शो॒भसे॑ ॥१॥
श्रि॒ये मर्या॑सो अ॒ञ्जीँर॑कृण्वत सु॒मारु॑तं॒ न पू॒र्वीरति॒ क्षप॑: ।
दि॒वस्पु॒त्रास॒ एता॒ न ये॑तिर आदि॒त्यास॒स्ते अ॒क्रा न वा॑वृधुः ॥२॥
प्र ये दि॒वः पृ॑थि॒व्या न ब॒र्हणा॒ त्मना॑ रिरि॒च्रे अ॒भ्रान्न सूर्य॑: ।
पाज॑स्वन्तो॒ न वी॒राः प॑न॒स्यवो॑ रि॒शाद॑सो॒ न मर्या॑ अ॒भिद्य॑वः ॥३॥
यु॒ष्माकं॑ बु॒ध्ने अ॒पां न याम॑नि विथु॒र्यति॒ न म॒ही श्र॑थ॒र्यति॑ ।
वि॒श्वप्सु॑र्य॒ज्ञो अ॒र्वाग॒यं सु व॒: प्रय॑स्वन्तो॒ न स॒त्राच॒ आ ग॑त ॥४॥
यू॒यं धू॒र्षु प्र॒युजो॒ न र॒श्मिभि॒र्ज्योति॑ष्मन्तो॒ न भा॒सा व्यु॑ष्टिषु ।
श्ये॒नासो॒ न स्वय॑शसो रि॒शाद॑सः प्र॒वासो॒ न प्रसि॑तासः परि॒प्रुष॑: ॥५॥
प्र यद्वह॑ध्वे मरुतः परा॒काद्यू॒यं म॒हः सं॒वर॑णस्य॒ वस्व॑: ।
वि॒दा॒नासो॑ वसवो॒ राध्य॑स्या॒ऽऽराच्चि॒द्द्वेष॑: सनु॒तर्यु॑योत ॥६॥
य उ॒दृचि॑ य॒ज्ञे अ॑ध्वरे॒ष्ठा म॒रुद्भ्यो॒ न मानु॑षो॒ ददा॑शत् ।
रे॒वत्स वयो॑ दधते सु॒वीरं॒ स दे॒वाना॒मपि॑ गोपी॒थे अ॑स्तु ॥७॥
ते हि य॒ज्ञेषु॑ य॒ज्ञिया॑स॒ ऊमा॑ आदि॒त्येन॒ नाम्ना॒ शम्भ॑विष्ठाः ।
ते नो॑ऽवन्तु रथ॒तूर्म॑नी॒षां म॒हश्च॒ याम॑न्नध्व॒रे च॑का॒नाः ॥८॥